गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 24

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 1

व्रजतत्त्व सन्निहित व्रजधाम का वास्तविक स्वरूप प्राकृत नेत्रों का नहीं अपितु विशिष्ट-उपासना-संस्कृत दृष्टि का गोचर है। अन्य मत यह भी है कि व्रजधाम व्रज-गोलक नहीं अपितु साक्षात् व्रजतत्त्व ही है तथापि उसका वास्तविक स्वरूप प्रकृति-प्राकृत विकारयुत नेत्रों से अद्रष्टव्य है। सामान्य दृष्टि से जो पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश प्राकृत-जगत में उपलब्ध हैं वही व्रज-जगत में भी उपलब्ध हैं तथापि उपासना-संस्कार-संस्कृत दृष्टि से ही व्रजधाम की अलौकिकता एवं विलक्षणता का अनुभव संभव है। प्रबोधानन्द सरस्वती कहते हैं, ‘यत्र प्रविष्टः सकलोऽपि जन्तुः आनन्दसच्चिद्घनतामुपैति’ अर्थात्, व्रजधाम में प्रवेश करने मात्र से ही प्रत्येक प्राणी तत्क्षण सद्घन, चिद्घन, आनन्दघन हो जाता है। जैसे लवण पर्वत में डाली हुई प्रत्येक वस्तु सैन्धव-लवण में परिवर्तित हो जाती हैं किंवा, जैसे पारद निघर्षित गन्धक पारद-रूप ही हो जाती है, वैसे ही, व्रजधाम में सन्निविष्ट प्रत्येक तत्त्व तत्क्षण शुद्ध ब्रह्म सद्घन, चिद्घन, आनन्दघनस्वरूप हो जाता है। शाहंशाह अकबर से सम्बन्धित एक कथा है; हरिदास स्वामी के प्रति शाहंशाह अकबर विशेष श्रद्धायुक्त थे; शाहंशाह द्वारा बारम्बार सेवा हेतु विनीत प्रार्थना किए जाने पर हरिदास स्वामी ने उनको कोसीघाट के टूटे हुए कोने की मरम्मत करवाने की आज्ञा दी; इस आज्ञा को शिरोधार्य कर शाहंशाह कोसीघाट गए; वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि कोसीघाट कोई साधारण पाषाणमय घाट नहं अपतिु दिव्यातिदिव्य रतनों से विनिर्मित हैं। इस अनुभव से चमत्कृत हो शाहंशाह हरिदास स्वामी के यहाँ लौट आए और उनको अपना अनुभव कह सुनाया। भागवत-वाक्य है-

यत्पाद पांसुर्बहुजन्मकृच्छ्तो, धृतात्मभिर्योगिभिरप्यलभ्यः।
स एव यद्दृग्विषयः स्वयं स्थितः किं वर्ण्यते दिष्टमतो व्रजौकसाम्।।[1]

अर्थात धृतात्मा, संयमी, योगीन्द्र, मुनोन्द्रों के लिये भी व्रजधाम की पांशु दुर्लभ है। इतना ही नहीं, विभिन्न भावयुक्त दृष्टि से स्वयं भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र भी विभिन्नतः प्रतीत होते थे; दुर्योधनादि की दृष्टि में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का मात्र लौकिक प्राकृत स्वरूप ही स्फुरित होता था जबकि अर्जुनादि भक्तों के हृदय में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के प्रकृति-प्राकृत-प्रपंचातीत, अलौकिक परमेश्वर स्वरूप का प्रादुर्भाव होता था। तात्पर्य कि व्रजधाम का वास्तविक दिव्य स्वरूप विशिष्ट उपासना संस्कार-संस्कृत दृष्टि का ही विषय हो सकता है। इसी तरह भगवान राघवेन्द्र रामचन्द्र की अवतरण भूमि, अवधधाम की दिव्यता भी प्रसिद्ध है; वह भी सामान्य दृष्टि का विषय नहीं है।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537
  1. श्रीमद्भा. 10। 12। 12

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