गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप

महाभारत स्त्री पर्व में स्त्रीविलाप पर्व के अंतर्गत 16वें अध्याय में वैशम्पायन ने वेदव्यास जी के वरदान से दिव्य दृष्टिसम्पन्न हुई गांधारी का युद्धस्थल में मारे गये योद्धाओं तथा रोती हुई बहुओं को देखकर श्रीकृष्ण के सम्मुख विलाप करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

पांडवों के साथ कुरुकुल की स्त्रियों का रणभूमि में जाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्‍य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं। अतः रणभूमि का दृश्‍य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। बुद्धिमती गान्धारी ने नरवीरों के उस अद्भुत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हड्डियों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहाँ चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा था। वहाँ सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमंगलमयी गीदड़ियां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरुकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्धस्थल में गये। कुरुक्षेत्र में पहुँचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहाँ मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। रुद्र की क्रीड़ास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं। जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दुख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पाञ्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहाँ चेत नहीं रह गया था। उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दुख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा।[1]

गांधारी का श्रीकृष्ण के समक्ष विलाप

यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- 'कमलनयन माधव! मेरी इन विधवा पुत्रवधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भाँति विलाप कर रही हैं। वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक-पृथक दौड़ रही हैं। महाराज! कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है।। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है।[1] उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, केयूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खड्ग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांसभक्षी जीव-जन्तु आनन्दमग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। वीर! प्रभो! इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन! मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूँ। मधुसूदन! इन पाञ्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचों भूतों का ही विनाश हो गया। उन वीरों को खून से भीगे हुए गरुड़ और गीध इधर-उधर खींच रहे हैं। सहस्रों गीध उनके पैर पकड़-पकड़ कर खा रहे हैं। इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था?

जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्‍य होकर यहाँ पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भाँति-भाँति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरु चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शय्याओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदड़ियां बारबार चिल्‍लाती हुई इधर-उधर फेंकती हैं। ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भाँति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। सुन्दर रूप और कान्ति वाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भाँति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन! बहुत से योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहाँ मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीदड़ खींचते और झटकते हैं। वृष्णिसिंह! प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दुख और शोक से अत्यन्त पीड़ित हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव! इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भाँति शोभा पा रहे हैं।[2]

ये कुरुकुल की स्त्रियां रोना बंद करके स्वजनों का चिन्तन करती हुई परिजनों सहित उन्हीं की खोज में जाती और दुखी होकर उन-उन व्यक्तियों से मिल रही हैं। कौरव वंश की युवतियों के सूर्य और सुवर्ण के समान कान्तिमान मुख रोष और रोदन से ताम्रवर्ण के हो गये हैं। केशव! सुन्दर कान्ति से सम्पन्न, एकवस्त्रधारिणी तथा श्याम गौरवर्णवाली दुर्योधन की इन सुन्दरी स्त्रियों की टोलियों को देखो। एक दूसरी की रोदन-ध्वनि से मिल जाने के कारण इनके विलाप का अर्थ पूर्णरूप से समझ में नहीं आता, उसे सुनकर अन्य स्त्रियां भी कुछ नहीं समझ पाती हैं। ये वीर वनिताऐं लंबी सांस खींचकर स्वजनों को पुकार पुकार कर करूण विलाप करके दुख से छटपटाती हुई अपने प्राण त्याग देना चाहती हैं। बहुत सी स्त्रियां स्वजनों की लाशों को देखकर रोती, चिल्लाती और विलाप करती हैं। कितनी ही कोमल हाथों वाली कामिनियां अपने हाथों से सिर पीट रही हैं। कटकर गिरे हुए मस्तकों, हाथों और सम्पूर्ण अंगों के ढेर लगे हैं। ये सभी एक के ऊपर एक करके पड़े हैं। उनसे यहाँ की सारी पृथ्वी ढकी हुई जान पड़ती है। इन बिना मस्तक के सुन्दर धड़ों और बिना धड़ के मस्तकों को देख-देख कर ये अनुगामिनी स्त्रियां मूर्च्छित सी हो रही हैं। कितनी ही अचेत-सी होकर स्वजनों की खोज करने वाली स्त्रियां एक मस्तक को निकटवर्ती धड़ के साथ जोड़ करके देखती हैं और जब वह मस्तक उससे नहीं जुड़ता तथा दूसरा कोई मस्तक वहाँ देखने में नहीं आता तो वे दुखी होकर कहने लगती हैं कि यह तो उनका सिर नहीं है।

बालों से कट-कट कर अलग हुई बाहों, जांगों और पैरों को जोड़ती हुई ये दुखी अवलाऐं बार-बार मूर्च्छित हो जाती हैं। कितनी ही लाशों के सिर कटकर गायब हो गये हैं, कितनों को मांस भक्षी पशुओं और पक्षियों ने खा डाला है; अतः उनको देखकर भी ये हमारे ही पति हैं, इस रूप में भरत कुल की स्त्रियां पहचान नहीं पाती हैं। मधुसूदन! देखो, बहुत सी स्त्रियां शत्रुओं द्वारा मारे गये भाईयों, पिताओं, पुत्रों और पतियों को देखकर अपने हाथों से सिर पीट रही हैं। खड्ग युक्त भुजाओं और कुण्डलों सहित मस्तकों से ढकी हुई इस पृथ्वी पर चलना फिरना असंभव हो गया है। यहाँ मांस और रक्त की कीच जम गयी है। ये सती साध्वी सुन्दरी स्त्रियां पहले कभी ऐसे दुख में नहीं पड़ी थीं; किन्तु आज दुख के समुद्र में डूब रही हैं। यह सारी पृथ्वी इनके भाइयों, पतियों और पुत्रों से ढक गयी है। जर्नादन! देखो, महाराज धृतराष्ट्र की सुन्दर केशों वाली पुत्रवधुओं की ये कई टोलियां, बछेड़ियों की झुण्ड के समान दिखाई दे रही हैं। केशव! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख और क्या होगा कि ये सारी बहुऐं यहाँ आकर अनेक प्रकार से आर्तनाद कर रही हैं। माधव! निश्चय ही मैंने पूर्व जन्मों में कोई बड़ा भारी पाप किया है जिससे आज अपने पुत्रों, पौत्रों और भाईयों को यहाँ मारा गया देख रही हूं'। भगवान श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके पुत्र शोक से व्याकुल हो इस प्रकार आर्त विलाप करती हुई गान्धारी ने युद्ध में मारे गये अपने पुत्र दुर्योधन को देखा।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-21
  2. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 22-43
  3. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 44-61

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः