गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

महाभारत स्त्री पर्व में स्त्रीविलाप पर्व के अंतर्गत 25वें अध्याय में वैशम्पायन ने गांधारी का शोकातुर होकर कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

वैशम्पायन जी कहते हैं- भारत! ऐसा कहकर शोक से मूर्च्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दुख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ़ दिया। गान्धारी ने कहा- 'श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। तुम महान बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरुकुल के नाश की उपेक्षा की जान-बूझकर इस वंश का विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले केशव! मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूँ। गोविन्द! तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। मधुसूदन! आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंशी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी'। वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! वह घोर वचन सुनकर महामनस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- 'क्षत्राणी! मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णि वंश के यादव देव से ही नष्ट होंगे। शुभे! वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः आपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराश हो गये।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 25 श्लोक 32-50

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