धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत दसवें अध्याय में धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

कौरवों के संहार से कुरुकुल की स्थिति

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! विदुर की यह बात सुनकर पुरुष श्रेष्‍ठ राजा धृतराष्ट्र ने रथ जोतने की आज्ञा देकर पुन: इस प्रकार कहा। धृतराष्ट्र बोले- गान्‍धारी को तथा भरतवंशी अन्‍य सब स्त्रियों को शीघ्र ले आओ तथा वधू कुन्‍ती को साथ लेकर वहाँ जो दूसरी स्त्रियाँ हो, उन्‍हें भी बुला लो। परम धर्मज्ञ विदुर जी से ऐसा कहकर शोक से जिनकी ज्ञान शक्ति नष्‍ट-सी हो गयी थी, वे धर्मात्‍मा राजा धृतराष्ट्र रथ पर सवार हुए। गान्‍धारी पुत्र शोक से पीड़ित हो रही थीं, पति की आज्ञा-पाकर वे कुन्‍ती तथा अन्‍य स्त्रियों के साथ जहाँ राजा धृतराष्ट्र थे, वहाँ आयीं। वहाँ राजा के पास पहुँचकर अत्‍यन्‍त शोक में डूबी हुई वे सारी स्त्रियाँ एक दूसरी को पुकार-पुकारकर परस्‍पर गले से लग गयीं और जोर-जोर से फूट-फूटकर रोने लगीं। विदुर जी ने उन सब स्त्रियों को आश्‍वासन दिया। वे स्‍वयं भी उनसे अधिक आर्त हो गये थे। आँसुओं से गद्गद कण्ठ हुई उन सबको रथ पर चढ़ाकर वे नगर से बाहर निकले। तदनन्‍तर कौरवों के सभी घरों में बड़ा भारी आर्तनाद होने लगा। बूढ़ों से लेकर बच्‍चों तक सारा नगर शोक से व्‍याकुल हो

जिन स्त्रियों को पहले कभी देवताओं ने भी नहीं देखा था, उन्‍हीं को उस समय पतियों के मारे जाने पर साधारण लोग देख रहे थे। वे नारियाँ अपने सुन्‍दर केश बिखराये सारे अभूषण उतारकर एक ही वस्त्र धारण किये अनाथ की भाँति रणभूमि की ओर जा रही थीं। कौरवों के घर श्‍वेत पर्वत के समान जान पड़ते थे। उनसे जब वे स्त्रियाँ बाहर निकलीं, उस समय जिनका यूथपति मारा गया हो, पर्वतों की गुफा से निकली हुई उन चितकबरी हरिणियों के समान दिखायी देने लगीं। राजन! राजभवन के विशाल आँगन में एकत्र हुई उन किशोरी स्त्रियों के अनेक समुदाय शोक से पीड़ित होकर रणभूमि की ओर उसी प्रकार चले, जैसे बछेड़ियाँ शिक्षा भूमि पर लायी जाती हैं। एक दूसरी के हाथ पकड़कर पुत्रों, भाइयों और पिताओं के नाम ले-लेकर रोती हुई वे कुरुकुल की नारीयाँ प्रलयकाल में लोक-संहार का दृश्‍य दिखाती हुई-सी जान पड़ती थी। शोक से उनकी ज्ञानशक्ति लुप्‍त-सी हो गयी थी। वे रोती और विलाप करती हुई इधर-उधर दौड़ रही थीं। उन्‍हें कोई कर्तव्‍य नहीं सूझ रहा था। जो युवतियाँ पहले सखियों के सामने आने में भी लजाती थीं, वे ही उस दिन लाज छोड़कर एक वस्त्र धारण किये अपनी सासुओं के सामने उपस्थित हो गयी थीं। राजन! जो नारियाँ छोटे-से-छोटे शोक में भी एक-दूसरी के पास जाकर आश्‍वासन दिया करती थीं, वे ही शोक से व्‍याकुल हो परस्‍पर दृष्टिपात मात्र कर रही थीं।

धृतराष्ट्र का रणभूमि में जाने के लिये बाहर निकलना

उन रोती हुई सहस्रों स्त्रियों से घिरे हुए दुखी राजा धृतराष्ट्र नगर से युद्धस्‍थल में जाने के लिये तुरन्‍त लिकल पड़े। कारीगर, व्‍यापारी वैश्‍य तथा सब प्रकार के कर्मों से जीवन-निर्वाह करने वाले लोग राजा को आगे करके नगर से बाहर निकले। कौरवों का संहार हो जाने पर आर्तभाव से रोती और विलपती हुई उन नारियों का महान आर्तनाद सम्‍पूर्ण लोकों को व्‍यथित करता हुआ प्रकट होने लगा। प्रलयकाल आने पर दग्‍ध होते हुए प्राणियों के चीखने-चिल्लाने के समान उन स्त्रियों के रोने का वह महान शब्‍द गूँज रहा था। सब प्राणी ऐसा समझने लगे कि यह संहार काल आ पहुँचा है। महाराज! कुरुकुल का संहार हो जाने से अत्‍यन्‍त उद्विग्‍नचित्त हुए पुरवासी जो राजवंश के साथ पूर्ण अनुराग रखते थे, जोर-जोर से रोने लगे।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-20

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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