गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप

महाभारत स्त्री पर्व में स्त्रीविलाप पर्व के अंतर्गत 22वें अध्याय में गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

गांधारी का जयद्रथ को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप

गान्धारी बोलीं- भीमसेन ने जिसे मार गिराया था, वह शूरवीर अवन्ती नरेष बहुतेरे बन्धु-बान्धव से सम्पन्न था; परन्तु आज उसे बन्धुहीन की भाँति गीध और गीदड़ नोच-नोच कर खा रहे हैं। मधुसूद! देखो, अनेकों शूरवीरों का संहार करके वह खून से लथपथ हो वीरशैया पर सो रहा है। उसे सियार, कंक और नाना प्रकार के मांसभक्षी जीव जन्तु इधर-उधर खींच रहे हैं। यह समय का उलट-फेर तो देखो। भयानक मारकाट मचाने वाले इस शूरवीर अवन्ति नरेष को वीरषैया पर सोया देख उसकी स्त्रियाँ रोती हुई उसे सब ओर से घेर कर बैठी हैं। श्रीकृष्ण! देखो, महाधनुर्धर प्रतीप नन्दन मनस्वी बाह्लिक भल्ल से मारे जाकर सोये हुए सिंह के समान पड़े हैं। रणभूमि में मारे जाने पर भी पूर्णमासी को उगते हुए पूर्ण चन्द्रमा की भाँति इनके मुख की कांति अत्यन्त प्रकाशित हो रही है। श्रीकृष्ण! पुत्र शोक से संतप्त हो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इन्द्रकुमार अर्जुन ने युद्धस्थल में वृद्धक्षत्र के पुत्र जयद्रथ को मार गिराया है। यद्यपि उसकी रक्षा की पूरी व्यवस्था की गयी थी, तब भी अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाने की इच्छा वाले महात्मा अर्जुन ने ग्यारह अक्षौहिणी सेनाओं का भेदन करके जिसे मार डाला था, वही यह जयद्रथ यहाँ पड़ा है। इसे देखो। जनार्दन! सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी अभिमानी और मनस्वी जयद्रथ को गीध और सियार नोच-नोच कर खा रहे हैं।

अच्युत! इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियाँ यद्यपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़याँ उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाश को उनके निकट से गहरे गड्ढे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देश की स्त्रियाँ सिन्धु और सौवीर देश के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। जनार्दन! जिस दिन जयद्रथ द्रौपदी को हरकर केकयों के साथ भागा था, उसी दिन यह पाण्डवों के द्वारा वन्य हो गया था परन्तु उस समय दु:शला का सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण! उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं उसका सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी दु:शला जो अभी बालिका है, किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण! मेरे लिये इससे बढ़कर महान दुख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुएँ भी अनाथा हो गयीं। हाय! हाय, धिक्कार है। देखो, देखो दु:शला शोक और भय से रहित-सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीर ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, वही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय मृत्यु के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियाँ रो रही हैं।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 22 श्लोक 1-18

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः