हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 441

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहितरूपलाल काल के प्रन्‍य उल्‍लेखनीय बाणीकार

श्री किशोरीलाल गोस्‍वामी, श्री रसिकानंद लाल गोस्‍वामी, वृन्‍दावन दास जी (चाचा जी से भिन्‍न) रतनदास जी, प्रियादास जी, श्री जोरीलाल गोस्‍वामी, मीठा जी, भजनदास जी, श्री चतुर शिरोमणिलाल गोस्‍वामी, श्री सर्वसुखदास जी, श्री रंगीलाल गोस्‍वामी आदि।

अर्वाचीन काल (1875)

इस काल में भी रसिक-संत बराबर वाणी-रचना करते रहे हैं किंतु पिछले ‘कालों’ की भाँति कोई स्‍वतंत्र व्‍यक्तित्‍व संपन्‍न वाणीकार इस काल में नहीं हुआ है। स्‍वतंत्र व्‍यक्तित्‍व की थोड़ी सी झलक बाबू भोलानाथ जो हितभोरी में दिखलाई देती है। उन्‍होंने उच्‍च अंग्रेजी शिक्षा प्राप्‍त की थी और साथ ही वे जन्‍म-जात भक्‍त और कवि थे। व्‍यक्तिकरण की आधुनिक शैलियों का प्रभाव उनके पदों में स्‍पष्‍ट लक्षित होता है। राधावल्‍लभीय साहित्‍य में, ‘प्रेम की पीर’ का गान करने वाले तो वे कदाचित् अकेले कवि हैं। उनके संबंध में उनके एक प्रशंसक ने कहा है-

जोके प्राननि संग प्रेम की पीड़ा आई ।
प्राननि ही में रमी कछुक नननि में छाई ।।
पीड़ा ही में प्राननाथ के दरसन पाये ।
जुग-जुग के प्‍यासे नैना छवि देखि सिहाये ।।
सही सराहि-सराहि के कठिन प्रेम की पीर ।
बिक जान्‍यौ बिन मोलही हित भोरि मति धीर ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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