श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहितरूपलाल काल के प्रन्य उल्लेखनीय बाणीकार
श्री किशोरीलाल गोस्वामी, श्री रसिकानंद लाल गोस्वामी, वृन्दावन दास जी (चाचा जी से भिन्न) रतनदास जी, प्रियादास जी, श्री जोरीलाल गोस्वामी, मीठा जी, भजनदास जी, श्री चतुर शिरोमणिलाल गोस्वामी, श्री सर्वसुखदास जी, श्री रंगीलाल गोस्वामी आदि।
इस काल में भी रसिक-संत बराबर वाणी-रचना करते रहे हैं किंतु पिछले ‘कालों’ की भाँति कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व संपन्न वाणीकार इस काल में नहीं हुआ है। स्वतंत्र व्यक्तित्व की थोड़ी सी झलक बाबू भोलानाथ जो हितभोरी में दिखलाई देती है। उन्होंने उच्च अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी और साथ ही वे जन्म-जात भक्त और कवि थे। व्यक्तिकरण की आधुनिक शैलियों का प्रभाव उनके पदों में स्पष्ट लक्षित होता है। राधावल्लभीय साहित्य में, ‘प्रेम की पीर’ का गान करने वाले तो वे कदाचित् अकेले कवि हैं। उनके संबंध में उनके एक प्रशंसक ने कहा है- जोके प्राननि संग प्रेम की पीड़ा आई । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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