हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 440

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्री हित रूपलाल काल के अन्य प्रमुख वाणीकार

श्री श्रानंदी बाई:- यह श्री हित रूपलाल गोस्‍वामी के पुत्र भी रसिकानंद लाल गोस्‍वामी की शिष्‍या थीं। साहित्यिक दृष्टि से इनकी वाणी का अधिक महत्त्‍व नहीं है, किंतु उसमें प्रत्‍यक्ष अनुभव का प्रभाव स्‍पष्‍ट दिखलाई देता है। आनंदी बाई जी से पूर्व हित प्रभु की शिष्‍या गंगाबाई और यमुनाबाई ने भी बाणी-रचना की थी किंतु वे अब प्राप्‍त नहीं है। इस दृष्टि से आनंदी बाई की वारगी का महत्त्‍व बढ़ जाता है। इनका ‘निजु भाव विचार श्री हित शेष प्रकाश’ नामक एक समय-प्रबंध और कुछ फुटकर रचनायें प्राप्‍त है। इनकी संपूर्ण रचना दोहे, चौपाईयों और छप्‍प्‍यों में है। ‘निजुभाव विचार’ सं० 1840 में पूर्ण हुआ है।

अठारह सै चालीसिया संवत माधौ मास ।
यह प्रबंध पूरन भयौ कृष्‍ण पंचमी सनोवास ।।

इनके कुछ चुने हुए दोहे दिये जाते है:-

रूप प्रेम रस गहर में बूडे़ ललना लाल ।
मदन मुदित मुख खिलि रहे पानिप बढ़ी रसाल ।।
सुहृद अली करि आरती डगमग जगमग होति ।
श्री मुख लखों कि आरती कै जुग मुख छवि जोति ।।
म‍हकि सुगंध सने विवि श्रंगा, छवि पर वारौं कोटि अनंगा ।
स्‍याम तमाल प्रिय कंचन बेली, बिच लपटी हित नेह नवेली ।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः