श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी
इक दिन मैं इक साधु जिमायौ भैंस दुहत तै लाती। इसी प्रकार की काफी लम्बी तर्क परम्परा से वृद्धा साधु को तंग कर लेती है और अंत में साधु जब उसके हृदय में भगवन कृपा का संचार करते हैं तभी वह रास्ते पर आती है। चाचा जी ने श्री राधा की प्रधानता वाली रस-रीति को साधारण लोगों तक पहुँचाने में बड़ा काम किया है। हम देख चुके हैं कि राधावल्लभीय सिद्धान्त में राधा- कृष्ण के बीच में नित्य नूतन दाम्पत्य माना गया है। नूतन दाम्पत्य केवल नव वर-वधू के बीच में होता है, अत: सखीजन नूतन दाम्पत्य के स्वाद के लिये राधाकृष्ण के विवाह की नित्य रचना करती रहती हैं। यह ‘निकुंज का विवाह’ कहलाता है। इस पद्धति से विवाह का सर्वप्रथम वर्णन करने वाले श्री ध्रुवदास हैं। हम उनके ‘बिहावले’ का गद्य रूपान्तर पीछे दे चुके हैं। निकुंज की पद्धति के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार से भी रसिक भक्तों ने श्री राधाकृष्ण के विवाह का वर्णन किया है। यह ब्रज का विवाह कहलाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (विमुख उद्धारण बेली)
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