आदि अवस्था भावुक की
जिनकौ इन धामनि मन लाग्यौ, चौंप चाइ हिय अंकुल जाग्यौ ।
पलटी रीति हीय जिय जोहन, भासत चली धाम गति सोहन ।
कहूँ निशा पावस अति कारी, पून्यौ पावस कहूँ उजारी ।
जोन्ह उजास घटा ज्यौं भासै, त्यौंही धाम प्रकास प्रकासै ।
लखत लता दु्रम गृह बन सोभा, उलहै ललक लोभ हिय गोभा ।
ज्यौं-ज्यौं भासै भाँति सुहाई, तादृश लखन चित्त अकुलाई ।
कबहुँ जात तिहि माँहि समाई, चमकि जात गति चित्रितताई ।
मिल्यौ जात जिय हियौ चुचाई, पुनि-पुनि कुंज रजहि लपटाई ।
अरुन बरन रसमाते नैना, कोमल मधुर गहबरत बैना ।
धाम-नाम मुख उच्चरत हित अनूप सुनि बात ।
नख सिख तैं सब गात के अंग-अंग फिरि जात ।।