हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 249

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


आज बन क्रीड़त श्यामा श्याम।
सुभग बनी निशि शरद चाँदनी रुचिर कुंज अभिराम।।
खण्डन अधर करत परिरंभन ऐंचत जघन दुकूल।
उर नख पात तिरीछी चितर्वान दंपति रस समतूल।।
वे भुज पीन पयोधर परसत वामदृशा पिय हार।
वसननि पीक अलक आकर्षत समर श्रमिक सत मार।।
पल पल प्रवल चौंप रस-लंपट अति सुन्दर सुकुमार।
(जै श्री) हित हरिवंश आज तृण टूटत हौं बलि विंशद विहार।।

सुन्दर पुलिन सुभग सुखदायक।
नव-नव घन अनुराग परस्पर खेलत कुँवर नागरी-नायक।।
शीतल हंस सुता रस-वीचिनि परस पवन सीकर मृदु बरसत।
बर मन्दार कमल चंपक कुल सौरभ सरस मिथुर मन हरसत।।
सकल सुबंग विलास परावधि नाचत नवल मिले सुर गावत।
मृगज, मयूर, मराल, भ्रमर, कपि अद्भुत कोटि मदन शिर नावत।।
निर्मित कुसुम सैन मधु पूरित भाजन-कनक निकुंज विराजत।
रजनी-मुख सुख-रासि परस्पर सुरत समर दोऊ दल साजत।।
विट-कुल-नृपति किशोरी कर धृतबुधि-बल नीवी बंधन मोचत।
नेति-नेति वचनामृत बोलत प्रणय-कोप प्रीतम नहिं सोचत।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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