आज अति राजत दंपति भोर।
सुरत रंग के रस में भीने नागरि नवल किशोर।।
अंसनि पर भुज दिये विलोकत इंदु-वदन विवि ओर।
करत पान रस-मत्त परस्पर लोचन तृषित चकोर।।
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ ये याके चित चोर।
परिरंभन चुम्बन मिलि गावत सुर मंदर कल घोर।
पग डगमगत चलत बन विहरत रुचिर कुंज घन खोर।
(जै श्री, हित हरिवंश लाल-ललना मिलि हियौ सिरावत मोर।।
बन की कुंजन कुंजनि डोलनि।
निकसत निपट साँकरी वीथिनि परसत नाहि निचोलनि।।
प्रातकाल रजनी सब जागे सूचत सुख दृग लोलनि।
आलसवंत अरुण अति व्याकुल कछु उपजति गति गोलनि।
निर्तनि भृकुटि वदन अंबुज मृदु सरस हास मधु बोलनि।।
अति आसक्त लाल अलि-लंपट बस कीने बिनु मोर्लान।।
विलुलित सिथिल स्याम छूटी लट राजत रुचिर कपोर्लान।
रति विपरित चुम्बन परिरम्भन चिबुक चारू टक टोलनि।।
कबहुँ श्रमित किसलय सिज्या पर मुख अंचल झकझोलनि।
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत वारिधि-केलि-कलोलनि।।