हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 248

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


आज अति राजत दंपति भोर।
सुरत रंग के रस में भीने नागरि नवल किशोर।।
अंसनि पर भुज दिये विलोकत इंदु-वदन विवि ओर।
करत पान रस-मत्त परस्पर लोचन तृषित चकोर।।
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ ये याके चित चोर।
परिरंभन चुम्बन मिलि गावत सुर मंदर कल घोर।
पग डगमगत चलत बन विहरत रुचिर कुंज घन खोर।
(जै श्री, हित हरिवंश लाल-ललना मिलि हियौ सिरावत मोर।।

बन की कुंजन कुंजनि डोलनि।
निकसत निपट साँकरी वीथिनि परसत नाहि निचोलनि।।
प्रातकाल रजनी सब जागे सूचत सुख दृग लोलनि।
आलसवंत अरुण अति व्याकुल कछु उपजति गति गोलनि।
निर्तनि भृकुटि वदन अंबुज मृदु सरस हास मधु बोलनि।।
अति आसक्त लाल अलि-लंपट बस कीने बिनु मोर्लान।।
विलुलित सिथिल स्याम छूटी लट राजत रुचिर कपोर्लान।
रति विपरित चुम्बन परिरम्भन चिबुक चारू टक टोलनि।।
कबहुँ श्रमित किसलय सिज्या पर मुख अंचल झकझोलनि।
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत वारिधि-केलि-कलोलनि।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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