हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 173

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
उपासना-मार्ग


इसी प्रकार प्रेमी अनन्यों को संध्यावंदन-तर्पणादि नित्य कर्म न करने से कोई हानि नहीं होती। कहा गया है ‘जो साधु पुरुष प्रातःकाल श्री हरि की मंगला आरती के उत्सव में लग जाते हैं, मध्याह्न में जिनका मन प्रभु को भोगादि अर्पण में लगा रहता है, और सायंकाल में जो पुनः सेवा में प्रवृत्त रहते हैं, जिन्होंने अपनी सम्पूर्ण क्रियायें राधापति के चरणों में लगादी हैं उनको संध्यावंदन तर्पणादि न करने से कोई प्रत्यपाय नहीं होता।’

प्रातः श्री हरि मंगलोत्सववतां मध्यान्ह काले पुन-
र्भोगाद्यर्पण मंत्रदत्त मनसां सायं पुनः सेविनां।
एवं श्रीवृषभानुजा पतिपदन्यस्तक्रियाणां सतां,
सन्ध्या वंदन तर्पणाद्य करणे न प्रत्यवायो भवेत्।।[1]

श्राद्धादिक कर्मों के लिये व्यवस्था दी हुई है ‘अनन्य भक्तों को श्राद्धादिक नहीं करने चाहिये क्योंकि उनकी भगवत शरणागति के द्वारा उनके पूर्वज कृतार्थ हो जाते हैं और यदि उनमें से किसी को प्रेतयोनि प्राप्त होने का सन्देह उपस्थित हो तो प्रतिदिन भगवन्नाम कीर्तन के द्वारा उनको तार देना चाहिये।’[2]

श्राद्धादीन्नेवै कुर्यात् हरि शरण वलेनेव पूर्वेकृतार्थाः।
संदेहे तारयेत् प्रतिदिन भगवन्नाम संकीर्तनेन।।[3]

श्री ध्रुवदास कहते हैं कि ‘जो लोग श्राद्ध कर्म में कुशल होते हैं वे पितृ लोक को जाते हैं। भक्त तो मुक्ति को भी कुछ नहीं समझता, अन्य लोकों की तो बात ही क्या है?

कर्म श्राद्ध में कुशल जे पितृ लोक ते जाँहिं।
भक्त गनत नहिं मुक्ति की और लोक किंहि मांहि।।

श्री हित प्रभु के द्वितीय पुत्र श्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी ने पितरों एवं देवताओं को संबोधन करके कहा है ‘आप लोग बलि के सम्वन्ध में मुझ से निराश हो जाँय क्योंकि मेरी बलि[4] के अभिलाषी मुकुन्द भगवान हो गये हैं। इसमें आपकी हानि भी नहीं होती, आप अन्य लोगों से बलि ग्रहण कर लें।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वि. 69
  2. गया श्राद्ध के द्वारा नहीं।
  3. से. वि. 37
  4. नैवेद्य

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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