हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 167

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
उपासना-मार्ग


इत चैंटी उत युगल सौं तत्सुख हित निष्काम।
यह सुधर्म हरिवंश कौ नाम-गिरा विश्राम।।[1]

अन्यत्र उन्होंने कहा है, ‘जो महा अभागे उपासक इष्ट की सेवा करके अन्य सब की निन्दा करते हैं, वे मूल को सींच कर वृक्ष को अग्नि से जलाते हैं।’

जल सींचत हैं मूल में वृक्ष जरावत आग।
इष्ट सेइ सब नींदरे देखौ महा अभाग।।[2]

धर्मी रसिकों के मन की स्थिति, बाह्य शारीरिक लक्षण, रहन-सहन, लोक व्यवहार, स्थापित रूढ़ियों तथा वैदिक और लौकिक कर्मों के प्रति उनके दृष्टिकोण आदि का विशद वर्णन संप्रदाय के ग्रन्थों में मिलता है। रसिकों ने मन की दो स्थितियाँ बतलाई हैं। अपनी साधारण स्थिति में वह केवल वैषयिक रसों का ग्रहण करता है और असाधारण स्थिति में अप्राकृत रस का आस्वाद करता है। मन की साधारण गति के नष्ट होने पर असाधारण स्थिति का उदय होता है। नागरीदास जी ने बतलाया है, ‘रसिक-नरेश[3] के रस-मार्ग पर चलने के लिये पहिले इस मन को मार देना होता है और फिर सर्वथा नये रूप में इसे जिला लेना होता है। मार कर जिलाया हुआ मन ही इस रस का रसिक बनता है। जब विषय-वासना को जला कर उसकी राख को भी झाड़-फटकार दिया जाता है, तब यह देह रसिक-नरेश के रस-मार्ग पर लगती है।’

यह मन मारि जिवाईये जियत न आवै काज।
गैल जु रसिक नरेश की चलनौ है इहि साज।।
विषय-वासना जारिकै झारि उड़ावै खेह।
मारग रसिक नरेस के तब ढंग लागै देह।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुधर्म बोधनी
  2. सुधर्म बोधनी
  3. श्री हितप्रभु

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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