श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
सहचरी
टहल लिये पिय प्यारी आगे छिनपल कहूँ न जाहीं। सखियाँ युगल की आसक्ति का स्वरूप हैं अतः इनके द्वारा किया गया युगल की आसक्ति का उपभोग स्वरूप का ही उपभोग है। वृन्दावन में हित-रूप सखियों का अनुपम हित ही मानो गौर-श्याम बनकर उनके मन और नेत्रों को सुख दे रहा है। हित के अद्भुत रूप एवं उसकी अद्भुत सेवा-प्रणाली का सुन्दर वर्णन करते हुए श्री भोरी सखी पूछते हैं ‘जिसकी प्यास तृप्ति रूप है और तृप्ति प्यासमयी है, उस प्रेम के अनूठे खेल को मैं अपने हृदय में कैसे लाऊँ ? जहाँ विरह मिलन रूप है और मिलन विरह रूप हैं, जहाँ विरह और मिलन एक हो रहे हैं, वहाँ मैं रसास्वाद कैसे करूँ ? जहाँ प्रिया प्रियतम रूप हैं और प्रियतम प्रिया रूप हैं, जहाँ प्रिया और प्रियतम परस्पर ओतप्रोत हो रहे हैं, वहाँ मैं इन दोनों को कैसे मिलाऊँ ? युगल की हृदय रूपी कुंज में जहाँ युगल की केलि हो रहीं है, वहाँ युगल हृदय की वृति बनकर मैं कैसे इन दोनों को लाड़ करूँ ? मन जिसको पाता नहीं है और बुद्धि का जहाँ प्रवेश नहीं है, अहा, ऐसे अद्भुत हित-रूप को मैं कैसे प्राप्त करूँ?’ कौन प्यास तृप्ति रूप, कौन तृप्ति प्यासमई, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गो. जतनलाल जी
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