हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 12

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


भवगत मुदित जी उच्चकोटि के संत एवं कवि थे। उपरोक्त दोनों ग्रन्थों के अतिरिक्त इनके 207 पद भी प्राप्त हैं जिनमें उन्होंने राधावल्लभीय रस-पद्धति से नित्य-विहार का कवित्व पूर्ण वर्णन किया है।

‘रसिक अनन्य माल’ में श्री हरिवंश का चरित्र नहीं है। इसका प्रारम्भ श्री हरिवंश के अन्यतम शिष्य राजा नरवाहन के चरित्र से हातो है। श्री हरिवंश के शिष्यों के बाद उनके पुत्रों के शिष्यों के चरित्र दिये गये हैं, किन्तु उनके पुत्रों में से किसी का चरित्र नहीं दिया है। शेष में, भगवत मुदित जी श्री हरिवंश के प्रपौत्र के प्रपौत्र एवं इस सम्प्रदाय के प्रसिद्ध आचार्य गोस्वामी दामोदर चन्द्र जी का समरण बड़े आदर के साथ करते है, किन्तु उनका चरित्र नहीं देते और उनके शिष्यों का देते हैं। इससे मालूम होता है कि भगवत मुदित जी का लक्ष्य इस संप्रदाय के आचार्य-गोस्वामियों का चरित्र लिखना नहीं था। वे केवल इन आचार्यों के अनुयायी रसिक-संतों का चरित्र लिखना चाहते थे, इसी से उन्होंने अपने ग्रंथ को श्री हरिवंश के चरित्र से प्रारंभ न करके नरवाहन जी के चरित्र से किया है।

भगवत मुदित जी राधावल्लभीय संप्रदाय की ओर आकृष्ट होते हुए भी गौड़ीय-वैष्णव सम्पदाय के अनुयायी थे। उनकी अद्भुत गुरु-निष्ठा की कथा प्रियादास जी ने अपनी भक्तमाल की टीका में लिखी है। अत: हम उनसे राधावल्लभीय रसिकों के प्रति अनुचित पक्षपात की आशंका नहीं रख सकते। रसिक अनन्यमाल के देखने से मालूम हो जाता है कि यह साम्पदायिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया है। वास्तव में, यह सोलहवीं शताब्दी के अन्त से लकर अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक का, इस सम्प्रदाय का, अत्यन्त प्रामाणिक इतिहास ग्रन्थ है। इसकी प्राचीनतम प्रति सं. 1759 की प्राप्त है।

उत्तमदास जी कृत श्री हरिवंश चरित्र- यह श्रीहित हरिवंश के जीवनवृत्त का सर्व-प्रथम संकलन है। मालूम होता है कि भगवत मुदित जी की अनन्यमाल से राधावल्लभियों को अपना इतिहास लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई है। ‘रसिक अनन्यमाल’ में इस सम्प्रदाय के स्थापक का चरित्र अलिखित था। उत्तमदास जी ने इस कमी को पूरा करने के लिये श्री हरिवंश के जीवन की ज्ञात घटनाओं को एक चरित्र के रूप में गठित कर दिया। ग्रन्थ के प्रारम्भ में उन्होंने लिखा है कि ‘मैंने धर्मियों के मुख से जो घटनायें सुनी हैं, उन्हीं को यहाँ लिख रहा हूँ।’ इस चरित्र के साथ उन्होंने हित-प्रभु के प्रधान शिष्यों के चरित्र भी दिये है और अंत में उन रसिकों के नामों की सूची दे दी है जिनमें चरित्र भगवत मुदित ने लिखे हैं:-

'इते रसिक की परिचई भगवत् मुदित बखान। दिग्दर्शनवत् कए ठाँ उत्तम कीने आन।।'

उत्तमदास जी का यह ग्रन्थ ‘रसिक अनन्य माल’ का पूरक माना गया और वह उसके साथ लगा दिया गया। ‘रसिक अनन्यमाल’ की सं. 1789 की प्राचीनतम प्राप्त प्रति में यह ग्रन्थ प्रारंभ में लगा हुआ है और इस प्रति के बाद की अनेक प्राचीन प्रतियों में यह उसके साथ लगा मिलता है। इसी से एक भ्रान्ति यह फैल गई है कि भगवत मुदित जी ने ही श्री हरिवंश का चरित्र लिखा है।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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