हरिगीता अध्याय 9:21-25

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 9 पद 21-25

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वे भोग कर सुख-भोग को, उस स्वर्गलोक विशाल में।
फिर पुण्य बीते आ फंसे इस लोक के दुख-जाल में॥
यों तीन वेदों में कहे जो कर्म-फल में लीन हैं॥
वे कामना-प्रियजन सदा आवागमन आधीन हैं॥21॥

जो जन मुझे भजते सदैव अनन्य-भावापन्न हो।
उनका स्वयं मैं ही चलाता योग-क्षेम प्रसन्न हो॥22॥

जो अन्य देवों को भजें नर नित्य श्रद्धा-लीन हो।
वे भी मुझे ही पूजते हैं पार्थ! पर विधि-हीन हो॥23॥

सब यज्ञ-भोक्ता विश्व-स्वामी पार्थ मैं ही हूँ सभी।
पर वे न मुझको जानते हैं तत्त्व से, गिरते तभी॥24॥

सुरभक्त सुर को पितृ को पाते पितर-अनुरक्त हैं।
जो भूत पूजें भूत को, पाते मुझे मम भक्त हैं॥25॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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