विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 9 पद 11-15 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 9 पद 11-15 मैं प्राणियों का ईश हूँ, इस भाव को नहिं जान के। करते अवज्ञा जड़, मुझे नर-देहधारी मान के॥11॥ चित्त भ्रष्ट, आशा ज्ञान कर्म निरर्थ सारे ही किये। वे आसुरी अति राक्षसी स्वभाव मोहात्मक लिये॥12॥ दैवी प्रकृति के आसरे, बुध-जन भजन मेरा करें। भूतादि अव्यय जान पार्थ! अनन्य मन से मन धरें॥13॥ नित यत्न से कीर्तन करें, दृढ़ व्रत सदा धरते हुए। करते भजन हैं भक्ति से मम वन्दना करते हुए॥14॥ कुछ भेद और अभेद से, कुछ ज्ञान-यज्ञ विधान से। पूजन करें मेरा कहीं कुछ सर्वतोमुख ध्यान से॥15॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः