हरिगीता अध्याय 4:26-30

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 4 पद 26-30

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कुछ होमते श्रोत्रादि, इन्द्रिय संयमों की आग में।
इन्द्रिय-अनल में कुछ विषय शब्दादि आहुति दे रमें॥26॥

कर आत्म-संयमरूप, योगानल प्रदीप्त सुज्ञान से।
कुछ प्राण एवं इन्द्रियों के कर्म हो में ध्यान से॥27॥

कुछ संयमी जन यज्ञ करते, योग तप से दान से।
स्वाध्याय से करते यती, कुछ यज्ञ करते ज्ञान से॥28॥

कुछ प्राण में हो में अपान, व प्राणवायु अपान में।
कुछ रोक प्राण अपान, प्राणायाम ही के ध्यान में॥29॥

कुछ मिताहारी हवन करते, प्राण ही में प्राण हैं।
क्षय पाप यज्ञों से किये, ये यज्ञ-विज्ञ महान् हैं॥30॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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