कहने न कहने की खरी खोटी कहेंगे रिपु सभी।
सामर्थ्य-निन्दा से घना दुख और क्या होगा कभी॥36॥
जीते रहे तो राज्य लोगे, मर गये तो स्वर्ग में।
इस भाँति निश्चय युद्ध का, करके उठो अरिवर्ग में।।37॥
जय-हार, लाभालाभ, सुख-दुख सम समझकर सब कहीं।
फिर युद्ध कर तुझको धनुर्धर ! पाप यों होगा नहीं।।38॥
है सांख्य का यह ज्ञान अब सुन योग का शुभ ज्ञान भी।
हो युक्त जिससे, कर्म-बन्धन पार्थ, छुटेंगे सभी॥39॥
आरम्भ इसमें है अमिट, यह विघ्न बाधा से परे।
इस धर्म का पालन तनिक भी सर्व संकट को हरे॥40॥