विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 16 पद 6-10 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 16 पद 6-10 दो भाँति की है दृष्टि दैवी, आसुरी संसार में॥ सुन आसुरी अब पार्थ! दैवी कह चुका विस्तार में॥6॥ क्या है प्रवृत्ति निवृत्ति! जग में जानते आसुर नहीं॥ आचार, सत्य विशुद्धता होती नहीं उनमें कहीं॥7॥ कहते असुर झूठा जगत्, बिन ईश बिन आधार है॥ केवल परस्पर योग से बस भोग-हित संसार है॥8॥ इस दृष्टि को धर, मूढ़ नर, नष्टात्म, रत अपकार में॥ जग-नाश हित वे क्रूर-कर्मी जन्मते संसार में॥9॥ मद मान दम्भ-विलीन, काम अपूर का आश्रय लिए॥ वर्तें अशुचि नर मोह वश, होकर असत् आग्रह किए॥10॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः