विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 16 पद 21-24 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 16 पद 21-24 ये काम लालच क्रोध तीनों ही नरक के द्वार हैं॥ इस हेतु तीनों आत्म-नाशक त्याज्य सर्व प्रकार हैं॥21॥ इन नरक द्वारों से पुरुष जो मुक्त पार्थ! सदैव ही॥ शुभ आचरण निज हेतु करता परमगति पाता वही॥22॥ जो शास्त्र-विधि को छोड़, करता कर्म मनमाने सभी॥ वह सिद्धि, सुख अथवा परमगति को न पाता है कभी॥23॥ इस हेतु कार्य-अकार्य-निर्णय मान शास्त्र-प्रमाण ही॥ करना कहा जो शास्त्र में है, जानकर वह, कर वही॥24॥ सोलहवाँ अध्याय समाप्त हुआ॥16॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः