हरिगीता अध्याय 16:21-24

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 16 पद 21-24

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ये काम लालच क्रोध तीनों ही नरक के द्वार हैं॥
इस हेतु तीनों आत्म-नाशक त्याज्य सर्व प्रकार हैं॥21॥

इन नरक द्वारों से पुरुष जो मुक्त पार्थ! सदैव ही॥
शुभ आचरण निज हेतु करता परमगति पाता वही॥22॥

जो शास्त्र-विधि को छोड़, करता कर्म मनमाने सभी॥
वह सिद्धि, सुख अथवा परमगति को न पाता है कभी॥23॥

इस हेतु कार्य-अकार्य-निर्णय मान शास्त्र-प्रमाण ही॥
करना कहा जो शास्त्र में है, जानकर वह, कर वही॥24॥


सोलहवाँ अध्याय समाप्त हुआ॥16॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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