विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 10 पद 6-10 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 10 पद 6-10 हे पार्थ! सप्त महर्षिजन, एवं प्रथम मनु चार भी। मम भाव-मानस से हुए, उत्पन्न उनसे जन सभी॥6॥ जो जानता मेरी विभूति, व योग-शक्ति यथार्थ है। संशय नहीं दृढ़-योग वह नर प्राप्त करता पार्थ है॥7॥ मैं जन्मदाता हूँ सभी मुझसे प्रवर्तित तात हैं। यह जान ज्ञानी भक्त भजते भाव से दिन-रात हैं॥8॥ मुझमें लगाकर प्राण मन, करते हुए मेरी कथा। करते परस्पर बोध, रमते तुष्ट रहते सर्वथा॥9॥ इस भाँति होकर युक्त जो नर नित्य भजते प्रीति से। मति-योग ऐसा दूँ, मुझे वे पा सकें जिस रीति से॥10॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः