हरिगीता अध्याय 10:6-10

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 10 पद 6-10

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हे पार्थ! सप्त महर्षिजन, एवं प्रथम मनु चार भी।
मम भाव-मानस से हुए, उत्पन्न उनसे जन सभी॥6॥

जो जानता मेरी विभूति, व योग-शक्ति यथार्थ है।
संशय नहीं दृढ़-योग वह नर प्राप्त करता पार्थ है॥7॥

मैं जन्मदाता हूँ सभी मुझसे प्रवर्तित तात हैं।
यह जान ज्ञानी भक्त भजते भाव से दिन-रात हैं॥8॥

मुझमें लगाकर प्राण मन, करते हुए मेरी कथा।
करते परस्पर बोध, रमते तुष्ट रहते सर्वथा॥9॥

इस भाँति होकर युक्त जो नर नित्य भजते प्रीति से।
मति-योग ऐसा दूँ, मुझे वे पा सकें जिस रीति से॥10॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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