श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
प्रथम अध्याय
द्रुपद- ये पाञ्चाल देश के राजा पृषत के पुत्र थे। महाराज पृषत और महर्षि भारद्वाज में मित्रता होने के कारण द्रुपद और द्रोणाचार्य में भी कुमारावस्था में मित्रता थी। द्रुपद के राजा बनने के पश्चात् द्रोणाचार्य ने उनके निकट अर्थ की याचना की, किन्तु द्रुपद ने द्रोणाचार्य का सम्मान नहीं किया। द्रोणाचार्य उस अपमान को नहीं भूल सके। अर्जुन की अस्त्र शिक्षा समाप्त होने पर इन्होंने गुरु-दक्षिण के रूप में द्रुपद को पकड़ कर अपने चरणों में सौंपने को कहा। अर्जुन ने इनके आदेश का पालन किया। द्रोणाचार्य ने द्रुपद के आधे राज्य को लेकर इन्हें मुक्त कर दिया। इन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए यज्ञ किया, जिसमें यज्ञ-वेदी से द्रौपदी और धृष्टद्युम्न का आविर्भाव हुआ।
चेकितान- ये वृष्णिवंशीय यादव थे। ये बड़े शूरवीर और महारथी योद्धा थे। ये पाण्डव सेना के सेनापतियों में से एक थे, जो महाभारत संग्राम में दुर्योधन के हाथों निहत हुए।
काशिराज- ये काशी के राजा थे, जो कि ‘दीर्घजिह्व’ नामक दानव के अंश से उत्पन्न हुए थ। ये बड़े शूरवीर और पराक्रमी थे तथा इन्होंने पाण्डवों की ओर से युद्ध किया था।
पुरुजित और कुन्तिभोज- ये दोनों पाण्डवों की माता कुन्ती के भाई थे, अतः ये पाण्डवों के मामा हुए। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथों इनका वध हुआ था।
शैब्य- ये महाराजा युधिष्ठिर के श्वसुर थे। इनकी देविका नामक पुत्री का विवाह युधिष्ठिर के साथ हुआ था। ये मनुष्यों में श्रेष्ठ, बलिष्ठ और वीर योद्धा थे, अतः इन्हें नरपुंगव कहा गया है।
युधामन्यु और उत्तमौजा- ये दोनों सगे भाई पाञ्चाल देशीय राजकुमार थे। ये बड़े पराक्रमी और शक्तिशाली थे। महाभारत युद्ध के अन्त में ये अश्वत्थामा के हाथों निहत हुए।
सौभद्र- भगवान श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था। सुभद्रा के गर्भ से वीर अभिमन्यु का जन्म हुआ था, अतः इन्हें सौभद्र भी कहा जाता है। इन्होंने अपने पिता श्री अर्जुन और बलरामजी से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा ग्रहण की थी। ये अत्यन्त असाधारण शूरवीर और महारथी थे। महाभारत युद्ध के समय इनकी आयु सोलह वर्ष की थी। अर्जुन की अनुपस्थिति में द्रोणाचार्य द्वारा रचित चक्रव्यूह में द्रोण, कृपाचार्य, कर्णादि सात महारथियों ने सम्मिलित सात महारथियों ने सम्मिलित रूप से अन्याय पूर्वक अकेले अभिमन्यु का वध किया था।
द्रौपदेय- पाँचों पाण्डवों द्वारा द्रौपदी के गर्भ से उत्पन्न प्रतिबिन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन को द्रौपदेय कहा गया है। इनके पिता क्रमशः युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। महाभारत युद्ध के अन्तिम समय में अश्वत्थामा अपने मित्र दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए रात्रि काल में निद्रा मग्न इन राजकुमारों का वध कर दिया था।
दुर्योधन ने जिन-जिन योद्धाओं के नामों का उल्लेख किया है, उनके अतिरिक्त भी पाण्डवों की सेना में बहुत सारे महारथी थे, जिनके लिए दुर्योधन ‘सर्वे’ पद का प्रयोग किया है।।4-6।।
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