भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 90

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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पितामह का उपदेश

राजा के लिये एक बात बहुत ही आवश्यक है, उसे सर्वदा सत्य का आश्रय लेना चाहिये। बिना सत्य के आश्रय से उसका कोई विश्वास नहीं करता और परलोक भी मारा जाता है। उसके अन्तरंग मित्र भी शंकित रहते हैं और शत्रु भी उसकी असत्यता घोषित करके लाभ उठाते हैं। जो राजा वीर, धीर, सदाचारी, दानी, शान्त, दयालु, धर्मात्मा, जितेन्द्रिय और हँसमुख होता है, उसकी लक्ष्मी कभी नष्ट नहीं होती। राजा को बहुत सरल अथवा बहुत उग्र नहीं होना चाहिये। सरल का कहीं रौब-दाब नहीं रहता और उग्र से सब भयभीत रहते हैं; उसे असली बात का पता नहीं चलता? राजा का एकमात्र कर्तव्य है धर्म की रक्षा; धर्म की रक्षा में ही प्रजा की रक्षा है। धर्म की रक्षा इसीलिये है कि उससे प्रजा का हित होता है। प्रजा के सुख-दु:ख को अपना सुख-दु:ख समझना ही राजा का परम कर्तव्य है। राजा को चाहिये कि सर्वदा क्षमा न करे और सर्वदा दण्ड न दे; क्योंकि क्षमा करने से अपराधियों की संख्या बढ़ जाती है और सर्वदा दण्ड ही देने से प्रजा अप्रसन्न हो जाती है। राजा को चाहिये कि सर्वदा अपने आदमियों की परीक्षा लिया करे, प्रत्यक्ष अनुमान, सादृश्य और शास्त्र के द्वारा सबको परखता रहे। किसी भी व्यसन में नहीं फँसना चाहिये। लोग राजा को किसी व्यसन में फँसाकर अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं। महान्-से-महान् विपत्ति के अवसरों पर भी राजा को घबराना नहीं चाहिये। नौकरों के साथ विनोद नहीं करना चाहिये और अपनी सेना को मजबूत रखना चाहिये। मुँह-लगे नौकर मन लगाकर काम नहीं करते, आज्ञापालन में टालमटूल कर देते हैं। गुप्त बात जानने की चेष्टा करते हैं। बड़ी-से-बड़ी चीज माँग बैठते हैं। इस तरह के अनेकों दोष उनमें आ जाते हैं। किनके साथ सन्धि करनी चाहिये और किनसे लड़ना चाहिये, इसका निर्णय अपनी बुद्धि से सोचकर और बुद्धिमान् एवं विश्वासपात्र मन्त्रियों से सम्मति लेकर करना चाहिये। राज्य के सात अंग हैं- स्वामी, मन्त्री,सुह्रद्, कोष, राष्ट्र, दुर्ग और सेना। इनका विरोधी चाहे कोई कयों न हो, उसका नाश कर देना चाहिये। इसी प्रकार राजाओं के अनेक धर्म हैं। इनकी स्थिति लोगों की रक्षा करने के लिये ही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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