भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 108

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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महाभारत का दिव्य उपदेश

श्री भीष्म पितामह के उपदेश

ब्रह्मस्वरुप में स्थित जीवन्मुक्त महापुरुष किसी बात का आग्रह नहीं करता, किसी का विरोध नहीं करता, किसी से द्वेष नहीं करता, किसी वस्तु की कामना नहीं करता। वह सब प्राणियों से समान बर्ताव करता है। वह सबको समत्व की तराजू पर तौलता है। दूसरे के कर्मों की न प्रशंसा करता है और न निन्दा। अव आकाश की भाँति सबमें समभाव से स्थित रहता है। न वह किसी से डरता और न तो कोई उससे डरता है। न वह अच्छा करता है, न वांछा करता है। किसी भी प्राणी के प्रति 'यह पापी है' इस प्रकार की भावना उसके मन में नहीं आती। वाणी से वह किसी को पापी नहीं कहता। शरीर से वह किसी के प्रति घृणा का व्यवहार नहीं करता। जिससे भूत, भविष्य और वर्तमान में कभी किसी प्रकार, किसी को पीड़ा नहीं पहुँचती, वही ब्रह्स्वरुप में स्थित है। जो पूजा करने वाले और मारने वाले दोनों के प्रति प्रिय अथवा अप्रिय बुद्धि नहीं रखता, वास्तव में वही महात्मा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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