भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 81

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध

यदि केवल व्यवहार की दृष्टि से ही देखा जाये तो भी यह प्रत्यक्ष अनुभव होता है कि जीव बड़े कृतघ्न हैं। जिन्होंने हमें प्रलय की घोर निद्रा में से जगाया, जिन्होंने हमें समझने-बूझने की बुद्धि दी, जिन्होंने हमें मनुष्य बनाया, जिनकी कृपा-दृष्टि से, जिनकी शक्ति से हम जीवित हैं, जिनकी गोद में हैं, जो एक क्षण के लिये भी हमें अपनी आँखों से ओझल नहीं करते, उन्हीं परमपिता, परम कारुणिक, सर्वशक्तिमान प्रभु को भूलकर हम विषयों का चिन्तन करते हैं। जगत् के तुच्छ जीवों की सेवा करते हैं, उनके सामने कुत्तों की भाँति चापलूसी करते फिरते हैं। जिनका सब कुछ है, उनसे तो हमने कुछ नाता ही नही जोड़ा, उन्हें तो भुला ही दिया। नाता जोड़ा उन लोगों से, याद किया उन लोगों को जो हमें नरक की धधकती हुई आग में जलाने को तैयार रहते हैं। इतना सब होने पर भी परम दयालु प्रभु हमारी भूलों पर दृष्टि नहीं डालते। वे स्मरण करते ही आ जाते हैं, ध्यान करते ही ध्यान करने बैठ जाते हैं, एक पग चलते ही सौ पग दौड़ आते हैं। यहाँ तक कि कोई उनका अनिष्ट करने भी उनके पास जाये तो वे उसकी भलाई ही करते हैं। मैं सोच भी नहीं सकता कि इतने कृपालु प्रभु को छोड़कर हम लोग दूसरों का चिन्तन-स्मरण क्यों करते हैं, परंतु करते हैं यह सच्ची बात है।

यहाँ प्रसंग है भीष्म का। चिन्तन-स्मरण न करने वालों का भी प्रभु ध्यान रखते हैं तो जिन्होंने संसार के सम्पूर्ण विषयों से अपना मन हटा लिया है, उनका वे कितना चिन्तन करते होंगे, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता। भीष्म को संसार से कोई मतलब न था। संसार में रहते हुए, अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए युद्ध में भी उन्होंने भगवान् का स्मरण किया। मारने वाले वेश में भी भगवान् को पहचाना। अब वे बाणशय्या पर पड़े हुए हैं, उनके शरीर में दों अंगुल भी ऐसी जगह नहीं जिसमें बाण न धंसे हों। तब क्या वे अपने शरीर, बाण अथवा पीड़ा को याद करते होंगे, नहीं-नहीं। उन्हें और किसी बात का स्मरण नहीं है; वे केवल भगवान् के स्मरण में ही तन्मय हैं, निरन्तर भगवान् के चिन्तन में ही संलग्न हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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