भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 82

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध

भगवान् का स्मरण करते हुए भीष्म का दर्शन करने के लिये कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जाने की आवश्यकता नहीं है। उनका दर्शन करने के लिये तो भगवान् श्रीकृष्ण के पास चलना चाहिये; क्योंकि भीष्म की अन्तरात्मा श्रीकृष्ण के पास है और भीष्म क्या कर रहे हैं, इस बात को केवल श्रीकृष्ण ही जानते हैं, परंतु श्रीकृष्ण के पास पहुँचना तो और कठिन है। उनके पास जाने के लिये भी उनके किसी प्रेमी की, उनके किसी परिचित की आवश्यकता है। चलें धर्मराज के पास। वास्तव में धर्मराज का अनुसरण करने से ही हम श्रीकृष्ण के पास पहुँच सकते हैं।

अच्छा, तो अठारह दिन का भारतीय महायुद्ध समाप्त हो चुका है, धर्मराज युधिष्ठिर ने राज्य लेना अस्वीकार किया, परंतु भाइयों ने, नारद ने, व्यास ने और सबसे अधिक श्रीकृष्ण ने उन्हें राज्य लेने के लिये बाध्य किया। युधिष्ठिर राजा हुए। वे प्रतिदिन और प्रतिक्षण अपने कर्तव्य का ध्यान रखते थे। गान्धारी, धृतराष्ट्र, विदुर, भाई-बन्धु सबका सम्मान करते हुए वे अपनी निखिल प्रजा को संतुष्ट रखते। आज सबकी प्रसन्नता सम्पादन करके वे भगवान् श्रीकृष्ण के पास जा रहे हैं। चलें हम भी उनके पीछे-पीछे। उन्हीं के कृपा प्रसाद से हम भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन प्राप्त करें और उनकी भक्तवत्सलता को मूर्तिमान् देखें।

युधिष्ठिर ने जाकर देखा, भगवान् श्रीकृष्ण मणिजटित सोने के पलंग पर बैठे हैं, सोने से मढ़ी हुई नीलम-मणि के समान के उनकी कान्ति चारों ओर फैल रही है। वर्षाकालीन बादल की भाँति उनके शरीर की सुस्निग्ध नीलोज्ज्वल कान्ति है। स्थिर विद्युत् के समान पीताम्बर ओढ़े हुए हैं। शरीर में दिव्य आभूषण पहने हुए हैं। उनके कण्ठ की कौस्तुभ मणि इस प्रकार जगमगा रही है मानो उदयाचल के पास भगवान् सूर्य अभी उग ही रहे हों। बड़ी सुन्दर छवि थी, देखते ही बनता था।

युधिष्ठिर ने उन्हें देखकर पूछा-'श्रीकृष्ण! रात में नींद तो अच्छी आयी है, कोई कष्ट तो नहीं हुआ है? आपकी कृपा से ही हम सब सकुशल हैं। आपकी ही कृपा से हमारी विजय और कीर्ति हुई है। आपकी कृपा से ही हम लोग धर्म से विचलित नहीं हुए। इस प्रकार बड़ी नम्रता से कहे गये युधिष्ठिर के वचन श्रीकृष्ण तक नहीं पहुँच सके। उस समय श्रीकृष्ण पलंग पर बैठे हुए दीख रहे थे, परंतु वास्तव में वे पलंग पर बैठे हुए नहीं थे। वे भीष्म के पास थे। युधिष्ठिर ने देखा कि श्रीकृष्ण ध्यानमग्न हैं, उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी है। वे आश्चर्यचकित हो गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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