भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 83

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध

बहुत देर के बाद युधिष्ठिर ने पुन: भगवान् से प्रार्थना की- 'प्रभो! आप किसका ध्यान कर रहे हैं? इस समय तीनों लोकों में मंगल तो है न? आप इस समय जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति इन तीनों से अतीत होकर तुरीयपद में स्थित हैं। आपने पाँचों प्राण रोककर इन्द्रियों को मन में, इन्द्रियों और मन को बुद्धि में एवं बुद्धि को आत्मा में स्थापित कर लिया है। आपके रोएँ तक नहीं हिलते, आपका शरीर पत्थर की तरह निश्चल हो रहा है। आप वायु से सुरक्षित दीपक की भाँति स्थिर भाव से स्थित हैं। आपके इस प्रकार ध्यान करने का क्या कारण है। यदि मैं वह बात जानने का अधिकारी होऊँ और कोई गुप्त बात न हो तो आप मुझसे अवश्य कहें। भगवन्! आप ही सारे संसार की रचना और संहार करने वाले हैं। क्षर-अक्षर, प्रकृति-पुरुष, व्यक्त-अव्यक्त सब आपके ही विस्तार हैं। आप अनादि, अनन्त, आदिपुरुष हैं। मैं नम्रता और भक्ति से आपको प्रणाम करता हूँ और जानना चाहता हूँ कि आप क्यों, किसका ध्यान करते थे?'

युधिष्ठिर की विनती सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने मन और इन्द्रियों को यथास्थान स्थापित किया। तत्पश्चात् मुस्कुराते हुए कहा-'युधिष्ठिर! भला आपसे गुप्त रखने की कौन-सी बात है? इस समय मैं आपके दादा वृद्ध पितामह भीष्म का चिन्तन कर रहा था। धर्मराज! वे बुझती हुई आग की तरह शरशय्या पर पड़े हुए मेरा ध्यान कर रहे हैं। मेरी प्रतिज्ञा है कि जो मेरा ध्यान करता है, उसका ध्यान किये बिना मुझसे रहा ही नहीं जाता। इसलिये मेरा मन उन्हीं की ओर था। जिनकी धनुषटंकार को इन्द्र भी नहीं सह सकते थे, जिनके बाहुबल के सामने कोई भी राजा नहीं ठहर सका, परशुराम तेईस दिन तक युद्ध करके भी जिन्हें नहीं हरा सके, वही महात्मा भीष्म आज आत्मसमर्पण करके मेरी शरण में आये हैं। भगवती भागीरथी ने जिन्हें गर्भ में धारण करके अपनी कोख को धन्य बनाया था, महर्षि वशिष्ठ जिन्हें ज्ञानोपदेश करके अपने ज्ञान को सफल किया था, जिन्हें अपना शिष्य बनाकर परशुराम ने अपने गुरुत्व को गौरवपूर्ण किया था, जो सम्पूर्ण वेद-वेदांग, विद्याओं के आधार, दिव्य शस्त्र-अस्त्रों के प्रधान आचार्य और भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों कालों को जानने वाले हैं, वही महात्मा भीष्म आज मन और इन्द्रियों को संयत करके मेरी शरण में आये हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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