भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 24

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन

धर्म के सम्बन्ध में बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जा सकते हैं। सत्य के सम्बन्ध में बड़ी लम्बी-चौड़ी डींगे हाँकी जा सकती हैं; परंतु जब धर्म के अनुसार चलने का प्रश्न आता है, सत्य पर स्थिर होने का कठिन अवसर सामने उपस्थित होता है, तब बड़े-बड़े व्याख्यानदाता टरक जाते हैं। मैं उन्हें धर्मात्मा या सत्यप्रेमी नहीं कह सकता। उनका अन्त:करण उनके वश में नहीं है, स्वयं उनके हृदय में धर्म और सत्य पर सच्ची आस्था नहीं है। वे धर्म और सत्य के सम्बन्ध में जो कुछ कहते हैं: वह मान-सम्मान पाने के लिये कहते हैं अथवा दम्भ करते हैं। ऐसे धर्मध्वजी झूठे सत्यवादी ऐन मौके पर धर्म से च्युत हो जाते हैं, सत्य से विमुख हो जाते हैं। ऊपर-ऊपर धर्मात्मा होने का ढोंग चाहे जितने लोग कर लें, जीवन में एक अवसर ऐसा आता है, जब धार्मिकता और सच्चाई की परीक्षा हो जाती है। जो उस समय धर्म पर दृढ़ रहा, सत्य पर अविचल भाव से प्रतिष्ठित रहा, वास्तव में वह धर्मात्मा है, वही सत्यवादी है।

अपने पिता शान्तनु की प्रसन्नता के लिये भीष्म ने प्रतिज्ञा तो कर ली थी कि मैं राज्य नहीं लूँगा, विवाह नहीं करुंगा; परंतु अभी इस बात की परीक्षा का असली मौका नहीं आया था। उनके पिता थे, उनकी माँ थीं, वे राज्य करते थे। उसके लिये इनके सामने कोई प्रश्न ही नहीं था। जब पिता मर गये तो एक भाई राजा हुआ। भाई मर गया तो दूसरा भाई राजा हुआ। उस समय तक इनके सामने कोई प्रश्न नहीं था। विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात् भरत वंश में अकेले भीष्म ही बच रहे थे। साम्राज्य के लोभ की दृष्टि से नहीं- यदि कर्तव्य की दृष्टि से देखा जाय तो भी समस्त प्रजा का पालन इन्हीं के सिर आ पड़ा था। भोग-विलास के लिये इन्हें संतानोत्पादन आवश्यक था सो बात नहीं, वंश-परम्परा की रक्षा के लिये भी विवाह करना अनिवार्य हो गया था। ऐसी स्थिति में यदि वे राजा बन जाते और बच्चे पैदा करते तो संसार में उन्हें कोई बुरा नहीं कहता, परंतु भीष्म सत्यनिष्ठ थे, सच्चे धर्मात्मा थे। उनके मन में यह कल्पना भी नहीं उठी कि मुझे राज्य करना है अथवा संतान उत्पन्न करना है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः