भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 23

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक

इतने विषयों में पड़कर भला भगवान के याद करने की क्या जरुरत रही? परंतु वे चाहे भूल जाएँ- मौत उन्हें कब भूलती है। वह तो उनके सिर पर मँडरा रही थी। एक दिन उसने अपने दूत भेज ही दिये। राजा विचित्रवीर्य को क्षयरोग हो गया, जिस भोग के पीछे उन्होंने परमार्थ की उपेक्षा की, धर्म और अर्थ को भूल गये, उसी भोग के फलस्वरुप यह क्षय की बीमारी उन्हें प्राप्त हुई। संसार का यही स्वरुप है। जिस वस्तु से पहले हमें सुख मिलता दीखता है, उसी से पीछे दु:ख मिलता है: क्योंकि संसार अनित्य एवं दु:खमय है। इसकी किसी वस्तु को अपना लो, एक क्षण तक अवश्य ही सुख प्रतीत हो सकता है। वह भी झूठ-मूठ-नाम मात्र का, पीछे तो दु:ख ही दु:ख है। इसके विपरीत यदि परमात्मा का आश्रय लिया जाय तो पहले कुछ दु:ख-सा प्रतीत होने पर भी वास्तव में सुख्-ही-सुख है। परंतु जीव ऐसा अज्ञानी है, मोह में फँसा हुआ है कि थोड़े-से प्रतीयमान सुख के लिये अनन्त निरवधि सुख का परित्याग कर देता है। विचित्रवीर्य की यही दशा हुई। वे चलने-फिरने में अशक्त हो गये। दिनों दिन उनकी क्षीणता बढ़ती ही गयी।

बड़ी चेष्टा की गयी कि इनका रोग अच्छा हो जाय। देश-देश से बड़े-बड़े वैद्य बुलाये गये। बहुत-सा धन खर्च करके बहुमूल्य औषध तैयार किये गये। भीष्म ने भी विचित्रवीर्य के स्वास्थ्य के लिये बड़ी चेष्टा की, परंतु मौत के दरबार में किसी की सुनवाई नहीं हुयी। एक दिन राजा विचित्रवीर्य इस संसार से चल बसे। उनका राज्य यहीं रह गया। स्त्रियाँ भी साथ नहीं गयीं। शरीर पंचभूतों में मिल गया, केवल उनके पाप-पुण्य कर्म उनके साथ गये। जिस जीवन से उन्हें भगवान् मिल सकते थे, उसे इस प्रकार उन्होंने विषय-विलास में खो दिया।

सत्यवती के पिता दाशराज ने शान्तनु से जिसके वंश के साम्राज्य के लिये बड़े-बड़े मनसूबे बाँध रखे थे, बड़ी-बड़ी पेचबन्दियाँ कर रखी थीं, भीष्म से प्रतिज्ञा करवायी थी कि हम राज्य न लेंगे, आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे, उसी सत्यवती का वंश डूबने लगा। सत्यवती शोकग्रस्त हो गयी। भरत वंश का इस प्रकार लोप होते देखकर भीष्म को भी बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने विधि-विधान से विचित्रवीर्य की अन्त्येष्टि क्रिया की और भगवान् के ऊपर विश्वास रखकर वे निश्चिन्त हो गये। उनकी धारणा थी कि भगवान् के राज्य में उनकी इच्छा के विपरीत कोई घटना घट नहीं सकती और जो घटना उनकी इच्छा से घटेगी, वह सर्वथा मंगलमय ही होगी। वे निश्चिन्त होकर भगवान् के भजन में लग गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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