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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोकदूसरे दिन युद्ध में परशुराम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। भीष्म ने भी उसे शान्त करने के लिये ब्रह्मास्त्र का ही प्रयोग किया। चारों ओर हाहाकार मच गया, त्राहि-त्राहि की आवाज से दिशाएँ गूँज उठीं। भीष्म ने प्रस्वाप-अस्त्र छोड़ने का विचार किया। उसी समय आकाश से देवताओं ने कहा-'भीष्म! तुम प्रस्वाप-अस्त्र का प्रयोग मत करो।' भीष्म ने उस पर ध्यान नहीं दिया। वे प्रस्वाप-अस्त्र का प्रयोग करने ही जा रहे थे कि नारद ने आकर उन्हें रोक दिया और उन आठों वसुओं ने भी नारद् जी की बात का अनुमोदन किया। भीष्म भी मान गये। उस समय प्रस्वाप-अस्त्र का प्रयोग न होने से परशुराम के मुँह से एकाएक निकल गया कि 'भीष्म ने मुझे जीत लिया।' उस समय परशुराम के पितामह ने युद्धभूमि में प्रकट होकर परशुराम को युद्ध करने से मना किया और पितरों, देवताओं तथा ऋषियों के बीच-बचाव से वह युद्ध बन्द हो गया। भीष्म ने जाकर परशुराम के चरणों में प्रणाम किया। उस समय परशुराम ने प्रसन्नतापूर्वक हँसते हुए कहा- 'वीरवर भीष्म! पृथ्वी पर तुम्हारे समान बली और योद्धा दूसरा क्षत्रिय नहीं है। इस युद्ध में तुमने मुझे संतुष्ट किया।' इसके बाद परशुराम ने अम्बा से कहा-'राजकुमारी! मैंने अपनी शक्ति भर तुम्हारे लिये युद्ध किया, परंतु भीष्म को मैं नहीं हरा सका। इससे अधिक बल-पौरुष मुझमें नहीं है। अब तुम और जो कहो मैं करने को तैयार हूँ।' अम्बा ने कहा- 'भगवन! आपका कहना सत्य है, बड़े-बड़े देवता भी भीष्म को नहीं जीत सकते। अब मैं जाकर तपस्या करुँगी और वह शक्ति प्राप्त करुँगी जिससे भीष्म को मार सकूँ।' यह कहकर अम्बा चली गयी। भीष्म और परशुराम भी अपने-अपने स्थान पर लौट गये एक ओर तो भीष्म विचित्रवीर्य के लिये लड़ रहे थे, दूसरी ओर विचित्रवीर्य विषय-भोगों में लिप्त हो रहे थे। सारी पृथ्वी का साम्राज्य, भीष्म-जैसा रक्षक, तरुण-अवस्था और दो-दो सुन्दरी स्त्रियाँ पाकर विचित्रवीर्य भूल गये इस संसार को, भूल गये अपने जीवन को और अपने जीवन के लक्ष्य भगवान् को। सामग्रियों की कमी थी नहीं, इच्छा करते ही स्वर्ग से भी कोई वस्तु आ सकती थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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