भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 21

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक

भीष्म ने अपने धनुष-बाण नीचे रख दिये। नंगे पाँव पैदल जाकर उनके चरणों में नमस्कार किया और कहा कि 'गुरुदेव! मुझे आप अपने साथ युद्ध करने की आज्ञा दीजिये और जय का आर्शीवाद दीजिये।' परशुराम ने भीष्म की प्रशंसा की और भीष्म के व्यवहार को आदर्श बतलाया। उन्होंने युद्ध करने की आज्ञा दी और कहा कि 'मैं तुमसे जय प्राप्त करने के लिये ही युद्ध कर रहा हूँ, इस कारण जय का आर्शीवाद नहीं दे सकता।'

दोनों ओर से शस्त्र प्रहार का समय आया, शंख बजाये गये। भीष्म ने कहा कि 'भगवन्! आपने मुझ पर बहुत-से बाण चलाये हैं, मेरे घोड़े बेहोश-से हो गये हैं, फिर भी मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यद्यपि आपने गुरु की मर्यादा छोड़ दी है तथापि मैं आपको अपना आचार्य ही मानता हूँ। मैं इस समय आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ, वह यह कि मैं आपके शरीर में स्थित वेद, ब्रहम्तेज और आपकी की हुई तपस्या पर प्रहार नहीं करता। शस्त्र धारण करने से ब्राह्मण क्षत्रिय भाव को प्राप्त हो जाता है: इसलिये मैं आपके क्षत्रिय भाव पर चोट करता हूँ, अब आप मेरे धनुष का प्रभाव और बाहुओं का बल देखिये। मैं आपका धनुष काटता हूँ।' इतना कहकर भीष्म ने एक बाण चलाया और परशुराम का धनुष कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। इस प्रकार दोनों घात-प्रतिघात करने लगे।

लगातार तेईस दिनों तक युद्ध चलता रहा। दोनों शौच, स्नान, संध्या आदि नित्य कर्मों को करके युद्ध में डट जाते थे और जब तक सायं-संध्या का समय नहीं आता, तब तक भिड़े रहते थे। एक दिन भीष्म ने रात को बड़ी पवित्रता के साथ देवताओं की प्रार्थना करके नींद ली। उन्होंने संकल्प किया कि 'यदि मैं परशुराम को हरा सकता हूँ तो देवता लोग मुझे स्वप्न में दर्शन दें। वे दाहिनी करवट से सो गये। रात में आठों वसुओं ने ब्राह्मण के वेश में भीष्म को दर्शन दिया और कहा कि 'तुम्हें पहले जन्म में प्रस्वाप अस्त्र का ज्ञान था, उसका स्मरण करोगे तो वह तुम्हारे पास आ जायेगा और उसके बल पर तुम परशुराम को जीत सकोगे। उसका प्रयोग करने पर परशुराम युद्धभूमि में सो जायेंगे और तुम्हारी जीत होगी। सम्बोधन-अस्त्र का प्रयोग करने पर वे पुन: जाग जायेंगे। इस प्रकार तुम्हारी जीत भी हो जायेगी और परशुराम की मृत्यु भी नहीं होगी।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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