भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 20

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक

परशुराम की बातों से कुछ ऐसी ध्वनि निकलती थी कि भीष्म अम्बा के साथ विवाह करें; परंतु भीष्म के मन में तो ऐसी कल्पना हो ही नहीं सकती थी। उन्होंने कहा-'भगवन! अब इसका विवाह मेरे भाई विचित्रवीर्य के साथ कैसे हो सकता है। इसने मुझसे पहले कहा है कि मैं शाल्व को पति मान चुकी हूँ। इसी से मैंने इसे शाल्व के पास भेजा था। मैंने धर्म का उल्लंघन नहीं किया है। भय, दया, लोभ अथवा काम के वश होकर धर्म नहीं छोड़ना चाहिये, यह मेरा निश्चित व्रत है।' परशुराम ने कहा-'यदि तुम मेरी आज्ञा नहीं मानोगे तो मैं अभी तुम्हारे भृत्य, मन्त्री और अनुचरों के साथ तुम्हें मार डालुँगा।' भीष्म ने बड़ी अनुनय-विनय की और कहा कि मैं भय से धर्म नहीं छोड़ सकता। आप मेरे गुरुजन हैं: परंतु धर्म के लिये यदि आपसे भी युद्ध करना पड़े तो मैं कर सकता हूँ।' भीष्म की बात सुनकर परशुराम आग बबूला हो गये। उन्होंने युद्ध का समय निश्चित कर दिया और उन्हें ठीक समय पर युद्ध के लिये बुलाया। भीष्म ने युद्ध की तैयारी की, वे युद्ध के उपयोगी शस्त्रास्त्र से सुसज्जित हो रथ पर सवार होकर कुरुक्षेत्र के लिये चले। गुरुजनों ने आर्शीवाद दिया, ब्राह्मणों ने पुण्याहवाचन करके मंगलकामना प्रकट की और भीष्म कुरुक्षेत्र में पँहुच गये।

उस समय भीष्म की माता गंगा देवी प्रकट होकर उनके सामने आयीं और कहने लगीं-'बेटा! तुम यह क्या करने जा रहे हो। मैं अभी परशुराम के पास जाती हूँ, उनसे प्रार्थना करुँगी और उन्हें मनाउँगी। परशुराम से युद्ध मत करो।' भीष्म ने माता को हाथ जोड़कर सब बातें कहीं और परशुराम की आज्ञा का अनौचित्य भी बताया। गंगा देवी परशुराम के पास गयीं: परंतु परशुराम ने उनकी बात नहीं मानी। अन्त में युद्ध के लिये दोनों ही मैदान में उतर पड़े।

भीष्म ने परशुरामजी से कहा-'भगवन्! मैं रथ पर हूँ और आप पृथ्वी पर हैं। इस प्रकार किसी से युद्ध करना अनुचित है। यदि आप मुझसे लड़ना चाहते हैं तो कवच धारण कीजिये और रथ पर बैठिये।' परशुराम ने कहा-'भीष्म! पृथ्वी ही मेरा रथ है, चारों वेद घोड़े हैं, वायु सारथि है और गायत्री कवच है। इन्हीं से सुरक्षित होकर मैं तुमसे लड़ुगाँ।' इतना कहकर परशुराम बाणवर्षा करने लगे। उस समय भीष्म ने देखा कि परशुराम इच्छामात्र से कल्पित दिव्य रथ पर बैठे हुए हैं, उसमें दिव्य घोड़े जुते हुए हैं। वे सब शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित एवं कवच पहने हुए हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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