भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 89

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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पितामह का उपदेश

श्रीकृष्ण ने कहा-'पितामह! संसार में जो कुछ कल्याण और कीर्ति दीख रही है, उसका कारण मैं हूँ। संसार के सब भाव मुझसे पैदा हुए हैं। मैं सम्पूर्ण यश का केन्द्र हूँ; इस बात में किसी को संदेह नहीं है। इस समय मैंने अपनी विशाल बुद्धि आपके हृदय में प्रविष्ट करा दी है। मेरी इच्छा है कि आपके द्वारा ही उपदेश हो और वह संसार में वेद-वाक्य की भाँति स्थिर रहे। जो आपके उपदेशों का अनुसरण करेगा, उसका लोक, परलोक और परमार्थ बनेगा। जन्म से लेकर आज तक आप में कोई दोष नहीं देखा गया; आप धर्म के मर्मज्ञ हैं। आपने जीवन भर सत्संग किया है, ऋषि और देवताओं की उपासना की है। मैं आपकी कीर्ति को स्थायी बनाना चाहता हूँ। आप मेरी और सबकी इच्छा पूर्ण करें। आपका कल्याण होगा।'

श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर पितामह ने युधिष्ठिर को प्रश्न करने की आज्ञा दी। युधिष्ठिर ने उनके पास जाकर चरणों में प्रणाम करके बड़े विनीत भाव से धर्म और अध्यात्म-सम्बन्धी अनेकों प्रश्न किये। भीष्म पितामह ने उन सब प्रश्नों का पृथक्-पृथक् उत्तर दिया। उन सबका वर्णन महाभारत के शान्तिपर्व में है। प्रत्येक जिज्ञासु स्त्री-पुरुष को उसका स्वाध्याय करना चाहिये। वे सब उपदेश यहाँ किसी प्रकार उद्धधृत नहीं किये जा सकते। संक्षेप रुप से ही उद्धधृत किये जायें तो एक बड़ा-सा ग्रन्थ बन सकता है। यहाँ तो नाममात्र के लिये उनके कुुछ थोड़े-से वचन उद्धधृत कर दिये जाते हैं।

बेटा! मैं जगन्नियन्ता श्रीकृष्ण, धर्म और ब्राह्मणों को नमस्कार करके धर्म-सम्बन्धी कुछ बातें बताता हूँ। तुम सावधान होकर सुनो। राजा को चाहिये कि वह अपने उत्तम व्यवहार द्वारा देवताओं, दैवी सम्पत्ति वालों और ब्राह्मणों को प्रसन्न रखे। इनकी प्रसन्नता से धर्म प्रसन्न होता है और धर्म की प्रसन्नता से सब सुख-शान्ति मिलती है। जीवन में पुरुषार्थ की बड़ी आवश्यकता है। बिना पौरुष के भाग्य कोई फल नहीं देता। दैव और भाग्य का निश्चय तो फल मिलने के पश्चात् होता है। पहले तो पौरुष का ही आश्रय लेना चाहिये। कार्य प्रारम्भ कर देने पर कोई विघ्न आ जाये तो पूरी शक्ति के साथ उस विघ्न का सामना करना चाहिये और अपने कर्तव्य को सिद्ध करने का प्रयत्न करते रहना चाहिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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