भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 91

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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पितामह का उपदेश

ब्राह्मणों को अपने वर्णोक्त धर्म में अविचल भाव से स्थित रहना चाहिये। धनुष चलाना, शत्रुओं को मारना, खेती, रोजगार, पशुपालन और नौकरी-ब्राह्मणों का धर्म नहीं है। अध्ययन करना, अध्यापन करना, यज्ञ करना और यज्ञ कराना, दान देना और दान लेना-ब्राह्मणों के ये छ: कर्म कहे गये हैं। जितेन्द्रिय, याज्ञिक, सत्स्वभाव, दयालु, सहनशील, निर्लोभ, सरल, शान्तप्रकृति, अहिंसक और क्षमावान् ब्राह्मण ही वास्तव में ब्राह्मण है। ब्राह्मण एक स्थान में रहकर, शरीर के द्वारा कोई क्रिया न करके भी सारे जगत् का कल्याण कर सकता है। उसका वेदमन्त्रों का उच्चारण, हवन और शुभ संकल्प ही संसार के लिये बहुत उपयोगी है। क्षत्रिय ब्राह्मण का रक्षक है। वैश्य ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के भोजन-वस्त्र आदि की व्यवस्था करने वाला है। ये तीनों वर्ण एक-दूसरे के सहायक हैं। इन तीनों के साथ शूद्र का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। सच्ची बात तो यह है कि इनकी सहायता से ही धर्माचरण हो सकता है, इसलिये क्रिया के अधिकार में अन्तर होते हुए भी सब धर्म के समान फल के अधिकारी हैं।

चार आश्रम हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इनके धर्म अलग-अलग हैं। सबका पालन यथायोग्य होता है। ब्राह्मण के लिये चारों आश्रमों का ही विधान है। वह गृहस्थ और वानप्रस्थ में आये बिना भी सन्यास ले सकता है। सन्यास-आश्रम में सुख-दु:ख रहित, गृहविहीन, जो कुछ मिल जाये वही खाकर दिन बिता देने वाला, जितेन्द्रिय; दान्त, शम, भोग-वासना शून्य और निर्विकार रहना चाहिये। गृहस्थाश्रम में वेदों को दुहराना, संतान उत्पन्न करना, संयम के साथ विषयभोग करना, निष्कपट रहना, परिमित भोजन करना और देवता-पितर के ऋणों से मुक्त रहना धर्म कहा गया है। गृहस्थ को कृतज्ञ, देवप्रेमी, सत्यवादी, उपकारी, दानी और ऋतुकाल में अपनी स्त्री के पास रहने वाला होना चाहिये। वानप्रस्थ के नियम बड़े ही कठोर हैं। वेदाध्ययन के समय ब्रह्र्मचर्य-आश्रम स्वीकार करते हैं और अन्त:करण अपने वश में हो तो जीवन भर के लिये स्वीकार कर लेते हैं। जो यज्ञोपवीत लेकर अपनी इन्द्रियों को वश में करके देवताओं की पूजा, मन्त्रजप, आचार्य-सेवा, गुरु को प्रणाम, वेद-वेदांग का अध्ययन, वासनाओं और अधर्मियों के संसर्ग का त्याग और प्राणायाम-ध्यान आदि करत है, यथार्थ में वही ब्रह्मचारी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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