भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 65

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

ये तीनों कालों में एकरस और तीनों कालों के आश्रय हैं, उन्होंने मुझ पर परम अनुग्रह करके आज मुझसे वार्तालाप किया है। मैंने जगत् के लिये उनसे प्रार्थना की है कि तुम युदवंश में वसुदेव के घर अवतार ग्रहण करो। देवासुर-संग्राम में मारे हुए दैत्य और राक्षस पृथ्वी पर मनुष्यों के रुप में पैदा हुए हैं। उन्हें मारने के लिये तुम्हारा पृथ्वी पर अवतार लेना बहुत ही आवश्यक है। उन्होंने मेरी प्रार्थना स्वीकार की है, अब वे नर-नारायण के रुप में अवतार ग्रहण करेंगे। उन्हें कोई जीत नहीं सकता, मूढ़लोग उन्हें नहीं जान सकेंगे। ऋषियों और देवताओं! तुम लोगा उन्हें साधारण मनुष्य समझकर उनकी कभी अवज्ञा मत करना। वे सबके पूजनीय हैं, हम सब उनकी संतान हैं, हमें सर्वदा उनका सम्मान करना चाहिये। जो उन महापुरुष परमात्मा को मनुष्य समझकर उनका अनादर करता है, वह महान पापी है।'[1]

भीष्म बोले-'दुर्योधन! इतनी बात कहकर ब्रह्मा अपने लोक में चले गये। यह कथा मैंने परशुराम, मार्कण्डेय, व्यास और नारद से भी सुनी है। वासुदेव श्रीकृष्ण लोकपितामह ब्रह्मा के भी पिता हैं, यह जानकर भला कौन उनका सत्कार नहीं करेगा? मैंने और बहुत-से ऋषियों ने अनेकों बार तुम्हें समझाया कि वासुदेव और पाण्डवों से वैर मत करो, परंतु मोहवश तुमने किसी की बात नहीं सुनी, अब भी चेत जाओ तो अच्छा है। तुम नर-नारायण के अवतार अर्जुन और श्रीकृष्ण से द्रोह करते हो, यह तुम्हारा महान् दुर्भाग्य है। मैं तो तुम्हें क्रूर राक्षस समझता हूँ। मैं तुमसे फिर कहता हूँ कि श्रीकृष्ण ही प्रकृति के एकमात्र स्वामी हैं, वे जिस पक्ष में हैं, वही पक्ष विजयी होगा; क्योंकि जहाँ भगवान् हैं, वहीं धर्म है: जहाँ धर्म है, वहीं विजय है। इस समय स्वंय भगवान् ही पाण्डवों के रक्षक हैं, श्रीकृष्ण सर्वदा उनकी सहायता करते हैं, सलाह देते हैं और भय का निमित्त उपस्थित होने पर उनकी रक्षा करते हैं। श्रीकृष्ण के आश्रय से ही पाण्डव विजयी हो रहे हैं। मैंने तुम्हारे प्रश्न का संक्षेप में उत्तर दे दिया अब तुम और क्या जानना चाहते हो?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तस्मात् सेन्द्रै: सुरै: सर्वैर्लोकैश्चामितविक्रम:। नावज्ञेयो वासुदेवो मानुषोऽयमिति प्रभु:॥ यश्च मानुषमात्रोऽयमिति ब्रुयात् स मन्धधी:। हृषीकेशमवज्ञानात्तमाहु: पुरुषाधमम्॥ योगिनं तं महात्मानं प्रविष्टं मानुषीं तनुम्॥ अवमन्येद्वासुदेवं तमाहुस्तामसं जना:। देवं चराचरात्मानं श्रीवत्सांकं सुवर्चसम्॥ पद्मनाभं न जानति तमाहुस्तामसं बुधां:। किरीतकौस्तुभधरं मित्राणामभयंकरम्॥ अवजानन् महात्मानं घोरे तमसि मज्जति। एवं विदित्वा तत्त्वार्थं लोकानामीश्वर:॥ वासुदेवो नमस्कार्य: सर्वलोकै: सुरोत्तमा:॥

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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