भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 64

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन

जिनसे हिल-मिलकर तुम्हें राज्य-सुख का उपभोग करना चाहिये, उन्हीं के साथ वैर-विरोध करके तुम अपने और उनके मिले-मिलाये सुख-भोग में संदेह उत्पन्न कर रहे हो। चाहे उनकी हार हो या तुम्हारी, तुम्हारे ही भाई-बन्धु या तुम्हीं लोग इस सुख से वंचित रह जाओगे। 'बेटा दुर्योधन! पाण्डव सब काम सहज में ही कर सकते हैं, मुझे तो त्रिलोकी में उन्हें मारने वाला कोई नहीं दीखता है। स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण सर्वदा जिनकी रक्षा में तत्पर रहते हैं, उन पाण्डवों को मारने वाला प्राणी न पैदा हुआ है और न तो हो सकता है। यह बात मैं अपनी ओर से नहीं कह रहा हूँ, बड़े-बड़े आत्मज्ञानी मुनियों के मुँह से जो पुराण गाथा मैंने सुनी है, वही मैं कह रहा हूँ। तुम मन लगाकर सुनो।'

एक समय की बात है, सब देवता और ऋषि-मुनि गन्धमादन पर्वत पर ब्रह्माजी के पास गये, उनके सामने ही अन्तरिक्ष में एक विमान प्रकट हुआ। ब्रह्मा ने जान लिया कि ये परम पुरुष परमेश्वर हैं। ब्रह्मा ने अपने आसन से उठकर पवित्र हृदय से उनकी अभ्यर्थना की। देवता और ऋषियों ने उनका अनुकरण किया। ब्रह्मा ने शिष्टाचार के अनुसार उनकी पूजा की और भक्तिनम्र होकर वे उनकी स्तुति करने लगे। उन्होंने कहा-'प्रभो! हम सब तुम्हारी शरण में हैं, तुम सारे जगत् के आधार हो। सारा जगत् तुम्हारा ही व्यक्त रुप है। हम सब तुम्हारे गुण, प्रभाव, तेज-बल से अनभिज्ञ हैं। तुम्ही सबके एकमात्र गति हो, तुम्हारे ही प्रसाद से यह पृथ्वी निर्भयभाव से स्थित है। इस समय तुम धर्म की स्थापना और पृथ्वी का भार उतारने के लिये यदुवंश में अवतार ग्रहण करो। तुम अपने चर्तुव्यूह के साथ मनुष्य शरीर ग्रहण करो और हम सबकी अभिलाषा पूर्ण करो। तुम्हारे नाम अद्भभुत हैं, तुम्हारा रुप अद्भभुत है, हम सब तुम्हारे चरणों की शरण हैं।'

भगवान् ने स्निग्ध-गम्भीर स्वर से ब्रह्मा से कहा- 'मैं तुम्हारे मन की स्थिति जानकर ही प्रकट हुआ हूँ। मैं तुम्हारी प्रार्थना पूरी करूँगा।' इतना कहकर वे अदृश्य हो गये। अब देवता और ऋषियों ने ब्रह्मा से जिज्ञासा की कि ब्रह्म्न' हम यह जानने के लिये उत्सुक हैं कि अभी-अभी जो आपके सामने अचिन्त्य शक्तियुक्त महापुरुष प्रकट हुए थे, वे कौन हैं? ब्रह्मा ने बड़े मधुर स्वर से कहा-'ये सब प्राणियों के आत्मा परम प्रभु, परम ब्रह्म हैं। ये तत्पदवाच्य और तत्पद के लक्ष्यार्थ से समन्वित सबसे श्रेष्ठ पुरुषोत्तम हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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