भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 53

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी

अर्जुन बड़े वीर हैं, अर्जुन को बहुत-से दिक्ष्य अस्त्र-शस्त्र ज्ञात हैं और वे मुझसे युद्ध करने की योग्यता रखते हैं तथापि वे मुझसे आमने-सामने युद्ध नहीं करेंगे। मैं पाण्डवों पर बड़ प्रेम रखता हूँ, मैं उनमें से किसी का वध नहीं करुंगा। यदि मेरी मृत्यु पहले ही नहीं हो गयी, तो मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि नित्य उनके पक्ष के दस हजार योद्धाओं को मारूँगा। इनके सिवा एक शर्त है कि चाहे पहले कर्ण युद्ध कर ले या मैं कर लूँ। युद्ध में कर्ण मुझसे लाग-डांट रखता है, हम दोनों एक साथ ही युद्ध नहीं करेंगे। कर्ण ने कहा-'मैं पितामह के जीवन काल में युद्ध नहीं करूँगा।' भीष्म पितामह ने सेनापति का पद स्वीकार कर लिया।

दुर्योधन ने विधिपूर्वक भीष्म पितामह का सेनापति के पद पर अभिषेक किया। ब्राह्मणों को नाना प्रकार की दक्षिणाएँ दीं। अनेकों प्रकार के बाजे बजने लगे, योद्धाओं के सिंहनाद और हाथी-घोड़ों की चिक्कार से दिशाएँ गूँज उठीं, आकाश में, अन्तरिक्ष में और पृथ्वी पर भी बहुत से भयंकर उत्पात हुए। भीष्म पितामह को आगे करके सबने कुरुक्षेत्र की यात्रा की। कुरुक्षेत्र मे पहुँचकर सेना का शिविर लग गया, वहाँ एक दूसरा ही हस्तिनापुर बस गया, अब बस, केवल युद्ध की प्रतीक्षा थी।

भीष्म पितामह ने दुर्योधन को उनके पक्ष के सब महारथी, अतिरथी, रणी, एकरथी आदि की शक्ति बताया। इसी के सिलसिले में उन्होंने कर्ण को अर्धरथी कह दिया। पितामह ने कहा-'दुर्योधन! तुम जिस कर्ण की बातों को भूलकर पाण्डवों को जीतने की आशा रखते हो वह कर्ण बड़ा अभिमानी, नीच और झूठा है, उसके पास स्वाभाविक कवच-कुण्डल भी नहीं हैं, परशुराम से झूठ-मूठ अपने को ब्राह्मण बताकर धोखा देने के कारण शाप भी पा चुका है, उसे मैं रथी या अतिरथी कुछ नहीं समझता, केवल अर्धरथी समझता हूँ।' द्रोणाचार्य ने भीष्म पितामह की बातों का अनुमोदन किया। उन्होंने कहा-'कर्ण ने कभी वीरता का काम ही क्या किया है? बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, परंतु ऐन मौके पर भाग जाता है।' दोनों की बातें सुनकर कर्ण झूंझला उठा। वह बहुत कुछ बकने जा रहा था, परंतु दुर्योधन ने बात काट दी, वह भीष्म पितामह से पाण्डव पक्ष के वीरों की शक्ति पूछने लगा। भीष्म पितामह ने विस्तार से पाण्डव पक्ष की शक्ति का वर्णन किया और अन्त में कहा कि 'इन सब वीरों से मैं अकेला ही युद्ध करूँगा और इन्हें रोकूँगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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