भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 52

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी

इस दृष्टि से विचार करने पर ऐसा जान पड़ता है कि पाण्डवों के पक्ष में रहकर सात्यकि आदि धर्म की स्थापना के लिये जैसा कार्य् कर रहे हैं, वैसा ही कार्य दुर्योधन के पक्ष में रहकर भीष्म, द्रोण और कर्ण भी कर रहे हैं। ये सब-के-सब देवताओं के अवतार हैं। भगवान् की लीला के सहायक हैं, भगवान् की प्रसन्नता के लिये बाहर-बाहर से अधर्म के पक्ष का कार्य करते हुए भी पृथ्वी का भार हरण करने में भगवान् के वैसे ही सहायक हो रहे हैं, जैसे युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम: बल्कि एक दृष्टि से तो भगवान् की प्रसन्नता के लिये अनुचित पक्ष स्वीकार करके इन्होंने अपनी भक्ति की पराकाष्ठा दिखा दी। अथवा इनके न जानने पर भी भगवान् ने इन्हें अपनी लीला का ऐसा पात्र चुनकर इन पर अपनी निरतिशय ममता प्रकट की, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है।

चाहे लोग जो समझें, भीष्म ने भगवान् की इच्छा से, भगवान् की प्रेरणा से, भगवान् के कार्य में सहायता करने के लिये दुर्योधन का पक्ष लिया और उसके पहले सेनापति बनकर उन्होंने प्रतिदिन पाण्डव पक्ष के दस हजार वीरों को मारने की प्रतिज्ञा की।

जब दोनों ओर की तैयारी पूरी हो चुकी, तब दुर्योधन ने भीष्म पितामह के पास जाकर बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर कहा- 'पितामह! मेरी सेना लड़ने के लिये हर तरह से तैयार है, परंतु एक उपयुक्त सेनापति के बिना वह शिथिल पड़ रही है। सेना कितनी ही अधिक और बलवान् क्यों न हो, योग्य सेनापति के बिना वह कोई काम नहीं कर सकती। आप रणनीति के विशेषज्ञ हैं, धर्मात्मा हैं और मेरे हितचिन्तक हैं। आपको कोई मार नहीं सकता, क्योंकि आपकी मृत्यु आपकी इच्छा के अधीन है। आप ही हमारे रक्षक और स्वयंसिद्ध सेनापति हैं। आपसे रक्षित होने पर हमें देवताओं का भय भी नहीं होगा। जैसे देवताओं की सेना के आगे-आगे कार्तिकेय चलते हैं, वैसे ही आप हमारी सेना के आगे-आगे चलिये। हम सब आपके पीछे-पीछे चलेंगे।' दुर्योधन की प्रार्थना सुनकर भीष्म पितामह ने कहा-'दुर्योधन! तुम्हारा कहना ठीक है- मेरी दृष्टि में जैसे तुम हो, वैसे ही पाण्डव हैं। मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तुम्हारी ओर से युद्ध करूँगा और पाण्डवों को उनकी भलाई का उपदेश करूँगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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