भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 48

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी

भीष्म पितामह ने कर्ण की बात सुनकर धृतराष्ट्र से कहा- 'धृतराष्ट्र! कर्ण अपने मुँह से कई बार अपनी बढ़ाई करता है कि 'मैं पाण्डवों को मारूँगा; परंतु मैं दोनों का बलाबल जानता हूँ। यह पाण्डवों के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं है। इसके कारण तुम्हारे दुष्ट पुत्रों पर बड़ी भारी विपत्ति आने वाली है। दुर्योधन इसी के बल पर फूला-फूला फिरता है। इसी के कारण उसने देवता स्वरुप पाण्डवों का तिरस्कार किया है। कर्ण ने अब तक किया ही क्या है? अर्जुन ने इसके सामने ही इसके भाई विकर्ण को मार डाला, तब कर्ण का पौरुष कहाँ गया था? जब दुर्योधन आदि सौ कौरवों को विवश करके अकेले अर्जुन ने उनके कपड़े छीन लिये, तब क्या कर्ण सोया हुआ था? गन्धर्व जब कौरवों को पकड़कर ले गये थे, तब कर्ण ने उनका क्या कर लिया था? पाण्डवों ने ही उस समय कौरवों की रक्षा की थी। यह कर्ण अपने मुँह से अपनी बढ़ाई करता है और धर्म एवं अर्थ दोनों को नाश करने वाली सलाह दिया करता है। इसकी बात न मानकर पाण्डवों से सन्धि करों और उनका हिस्सा उन्हें दे दो।' द्रोणाचार्य ने पितामह की बात का समर्थन किया। धृतराष्ट्र के मन में उस समय न जाने क्या बात थी। उन्होंने पितामह के वचनों पर ध्यान नहीं दिया, वे संजय से बात करने लगे।

श्रीकृष्ण पाण्डवों की ओर से सन्धि का संदेश लेकर हस्तिनापुर आये। दुर्योधन ने भीतर-ही-भीतर यह षडयन्त्र रचा कि श्रीकृष्ण को कैद कर लिया जाये। जब यह बात भीष्म को मालूम हुई, तब उन्होंने बड़े कड़े शब्दों में धृतराष्ट्र से कहा-'धृतराष्ट्र! तुम्हारा पुत्र बड़ा नासमझ है। यह ऐसी ही बात सोचता है जिससे कुल का अनर्थ हो। इष्ट-मित्रों के समझाने पर भी यह ठीक रास्ते पर नहीं चलता। तुम भी अपने शुभचिन्तकों की बात पर ध्यान न देकर इस कुमार्गगामी पापी पुत्र की बात मानते हो और उसी के अनुसार चलते हो। यदि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण का कुछ अनिष्ट किया तो वह उनके क्रोध की आग में भस्म हो जायेगा। यह धर्म से च्युत हो गया है। इसकी ऐसी अनर्थकारी बात मैं नहीं सुनना चाहता।' इतना कहकर भीष्म पितामह वहाँ से उठकर चले गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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