भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 49

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी

जब भगवान् श्रीकृष्ण ने सबके सामने सभा में सन्धि का प्रस्ताव रखा और समझाया कि युद्ध में हानि-ही-हानि है, धर्म के मार्ग पर चलो और धर्मराज का हिस्सा दे दो। उस समय भीष्म ने दुर्योधन को सम्बोधन करके कहा-'बेटा! भाइयों के कल्याण की इच्छा से श्रीकृष्ण ने जो आज्ञा दी है, वह मान लो! क्रोध के वश में होना बहुत ही बुरा है। यदि तुम श्रीकृष्ण की बात नहीं मानोगे तो तुम्हारा भला नहीं होगा। उनकी आज्ञा का पालन करने में सच्चा सुख और कल्याण है। श्रीकृष्ण के वचन धर्म-अर्थ के अनुकूल और सच्चे अभीष्ट को सिद्ध करने वाले हैं। प्रजा का नाश मत करो, सन्धि का प्रस्ताव मान लो। बेटा! अभिमान से बावले होकर अपने मित्रों का जीवन संकट में मत डालो, अपने पिता के जीते-जी भरत कुल की साम्राज्य लक्ष्मी को नष्ट मत करो। मैं तुम्हें बार-बार सलाह देता हूँ कि धर्म से विचलित मत होओ।'

भीष्म के बाद द्रोणाचार्य, विदुर और धृतराष्ट्र ने बहुत कुछ समझाया, परंतु दुर्योधन ने किसी की बात नहीं सुनी। उसकी चाल-ढाल देखकर भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य को बड़ी व्यथा हुई। वे एक साथ ही दुर्योधन से कहने लगे-'दुर्योधन! अब भी संभल जाओ, अभी श्रीकृष्ण और अर्जुन ने युद्ध की घोषणा नहीं की है। अभी गाण्डीव पर डोरी नहीं चढ़ी है। धौम्य ने शत्रुओं के नाश के लिये हवन नहीं किया है। अभी शान्त आत्मा युधिष्ठिर ने क्रोधभरी दृष्टि से तुम्हें नहीं देखा है। भयंकर काल के समान भीमसेन गदा भाँजते हुए तुम्हारी सेना को अभी चौपट नहीं कर रहे हैं। अभी संभल जाओ। यह हत्याकाण्ड इसी समय रोक दो, तुम सिर झुकाकर युधिष्ठिर को प्रणाम करो: वे तुम्हें अपने गले से लगा लेंगे। वे अपना दाहिना हाथ तुम्हारे कंधे पर रखें और पीठ पर फेरें। तुम पाँचों पाण्डवों से प्रेम से मिलो, सब लोग आनन्द के आँसू बहावें। शान्ति की घोषणा की जाये और बिना खून-खराबा के सब लोग सुखपूर्वक रहने लगें।'

दुर्योधन ने किसी की बात नहीं मानी, उल्टे सभी से उठकर चला गया और श्रीकृष्ण को कैद करने की चेष्टा करने लगा। भगवान् श्रीकृष्ण ने अपना प्रभाव दिखाकर वहाँ से यात्रा की और उनके चले जाने के बाद भीष्म और द्रोण पुन: दुर्योधन को समझाने लगे। उन्होंने कहा-'दुर्योधन! कुन्ती ने श्रीकृष्ण के द्वारा पाण्डवों को जो संदेश भिजवाया है वह तुम्हें भी मालूम है। श्रीकृष्ण उससे सहमत हैं और पाण्डव अपनी माता की आज्ञा का पालन अवश्य करेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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