भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 47

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी

बृहस्पति ने ब्रह्मा से पूछा-'भगवन्! ये कौन हैं जो आपकी उपासना किये बिना आगे बढ़े जा रहे हैं?' ब्रह्मा ने कहा- 'ये अपने प्रभाव से तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले नर-नारायण हैं। इनके द्वारा सारे संसार में आनन्द और शान्ति का विस्तार हो रहा है। ये असुरों को मारने के लिये एक भगवान् के ही दो लीलाविग्रह हैं। इसलिये दुर्योधन! श्रीकृष्ण और अर्जुन को जीतने का विचार ठीक नहीं है।

भीष्म पितामह ने आगे कहा-'उन दिनों दैत्य और देवताओं का युद्ध चल रहा था, वे नर-नारायण के पास गये। उन्होंने उनकी स्तुति की और वर माँगा। नर-नारायण ने कहा-'इन्द्र! तुम्हारी जो इच्छा हो माँग लो।' तब उन्होंने युद्ध में सहायता माँगी। नर-नारायण की सहायता से इन्द्र विजयी हुए और दैत्य हार गये। नर-नारायण ने अनेकों बार दैत्यों को परास्त किया है। वही नर अर्जुन हैं और वही नारायण श्रीकृष्ण हैं। मैं यह बात अपनी ओर से नहीं कह रहा हूँ। वेदज्ञ नारद मुनि ने मुझसे यह बात कही है। उन्हें संसार का कोई वीर हरा नहीं सकता। दुर्योधन! अभी तुम मेरी बात नहीं सुन रहे हो, परंतु जब तुम शंख, चक्र, गदा, पद्यधारी भगवान् श्रीकृष्ण को और गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन को एक रथ पर बैठे देखोगे, तब तुम्हें मेरे वचनों का स्मरण होगा। मेरी बात नहीं मानोगे तो निस्संदेह कुरुवंशियों का सर्वनाश हो जायेगा। मैंने तुमसे बड़े रहस्य की बात कही है, इतने पर भी यदि तुम मेरा कहा न सुनोगे और परशुराम के शाप से कलंकित हीनजाति सूत-पुत्र कर्ण और पापबुद्धि शकुनि एवं दु:शासन की सलाह मानोगे तो यही समझना चाहिये कि तुम्हारी बुद्धि धर्म और अर्थ दोनों से ही भ्रष्ट हो गयी है।'

भीष्म पितामह की बात सुनकर कर्ण तमक उठा। उसने कहा- 'पितामह! अब ऐसी बात कभी मत कहियेगा। मैंने क्षत्रिय धर्म स्वीकार किया है। दुर्योधन को क्षत्रिय धर्म पालन करने की सलाह देता हूँ। मुझमें निन्दा करने योग्य कोई दोष या दुराचार नहीं है। मैं दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिये युद्ध में अर्जुन को मारूँगा। अब उससे मेल नहीं हो सकता। चाहे जैसे होगा, मैं दुर्योधन को प्रसन्न करूँगा।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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