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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारीबृहस्पति ने ब्रह्मा से पूछा-'भगवन्! ये कौन हैं जो आपकी उपासना किये बिना आगे बढ़े जा रहे हैं?' ब्रह्मा ने कहा- 'ये अपने प्रभाव से तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले नर-नारायण हैं। इनके द्वारा सारे संसार में आनन्द और शान्ति का विस्तार हो रहा है। ये असुरों को मारने के लिये एक भगवान् के ही दो लीलाविग्रह हैं। इसलिये दुर्योधन! श्रीकृष्ण और अर्जुन को जीतने का विचार ठीक नहीं है। भीष्म पितामह ने आगे कहा-'उन दिनों दैत्य और देवताओं का युद्ध चल रहा था, वे नर-नारायण के पास गये। उन्होंने उनकी स्तुति की और वर माँगा। नर-नारायण ने कहा-'इन्द्र! तुम्हारी जो इच्छा हो माँग लो।' तब उन्होंने युद्ध में सहायता माँगी। नर-नारायण की सहायता से इन्द्र विजयी हुए और दैत्य हार गये। नर-नारायण ने अनेकों बार दैत्यों को परास्त किया है। वही नर अर्जुन हैं और वही नारायण श्रीकृष्ण हैं। मैं यह बात अपनी ओर से नहीं कह रहा हूँ। वेदज्ञ नारद मुनि ने मुझसे यह बात कही है। उन्हें संसार का कोई वीर हरा नहीं सकता। दुर्योधन! अभी तुम मेरी बात नहीं सुन रहे हो, परंतु जब तुम शंख, चक्र, गदा, पद्यधारी भगवान् श्रीकृष्ण को और गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन को एक रथ पर बैठे देखोगे, तब तुम्हें मेरे वचनों का स्मरण होगा। मेरी बात नहीं मानोगे तो निस्संदेह कुरुवंशियों का सर्वनाश हो जायेगा। मैंने तुमसे बड़े रहस्य की बात कही है, इतने पर भी यदि तुम मेरा कहा न सुनोगे और परशुराम के शाप से कलंकित हीनजाति सूत-पुत्र कर्ण और पापबुद्धि शकुनि एवं दु:शासन की सलाह मानोगे तो यही समझना चाहिये कि तुम्हारी बुद्धि धर्म और अर्थ दोनों से ही भ्रष्ट हो गयी है।' भीष्म पितामह की बात सुनकर कर्ण तमक उठा। उसने कहा- 'पितामह! अब ऐसी बात कभी मत कहियेगा। मैंने क्षत्रिय धर्म स्वीकार किया है। दुर्योधन को क्षत्रिय धर्म पालन करने की सलाह देता हूँ। मुझमें निन्दा करने योग्य कोई दोष या दुराचार नहीं है। मैं दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिये युद्ध में अर्जुन को मारूँगा। अब उससे मेल नहीं हो सकता। चाहे जैसे होगा, मैं दुर्योधन को प्रसन्न करूँगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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