भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 46

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी

उस दिन अर्जुन के सामने कोई ठहर नहीं सका। कौरव हारकर हस्तिनापुर लौट गये। भीष्म पितामह को कौरवों के हारने की तनिक भी चिन्ता नहीं हुई। वे पाण्डवों के सकुशल मिल जाने से बहुत प्रसन्न थे। वे हृदय से चाह रहे थे कि बिना युद्ध के पाण्डवों का राज्य उन्हें मिल जाये और कौरव-पाण्डव दोनों ही सुखी हों। परंतु वे भगवान् की इच्छा की प्रतीक्षा कर रहे थे। वे जानते थे और विश्वास रखते थे कि भगवान् जो करेंगे अच्छा ही करेंगे। इसी विश्वास पर निश्चिन्त रहकर वे भगवान् के भजन में लगे रहते थे।

पाण्डव प्रकट हुए। विराट की पुत्री उत्तरा के साथ अभिमन्यु का विवाह हुआ। विवाह के अवसर पर देश-देश के मित्र राजा उपस्थित हुए। श्रीकृष्ण-बलराम भ आये। पाण्डवों को उनका राज्य प्राप्त हो जाये, इसके लिये लोगों का विचार-विनिमय हुआ। यह तय रहा कि पहले नम्रता से ही उनसे कहा जाये। यदि इतने पर भी वे पाण्डवों का हक नहीं दे देते तो युद्ध किया जाये। धृतराष्ट्र ने पाण्डवों के पास संजय को भेजा और बिना कुछ दिये सन्धि हो जाये इसकी चेष्टा की। संजय वहाँ से लौटकर आये, उन्होंने पाण्डवों के उत्साह का वर्णन किया और बतलाया कि उनसे युद्ध न करना ही अच्छा है। इस विषय पर कौरवों की सभा में विचार होने लगा। सबसे पहले भीष्म पितामह ने बड़े स्पष्ट शब्दों यह बात कही-'दुर्योधन! पाण्डवों को जीतना तुम्हारे वश की बात नहीं है। जिस पक्ष में श्रीकृष्ण और अर्जुन हैं, उसको कोई परास्त नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण और अर्जुन साक्षात् नर-नारायण हैं। यह बात केवल मैं ही नहीं कह रहा हूँ, सभी देवता और ऋषि इस बात को जानते हैं।'

'एक समय ब्रह्मा की सभा लगी हुई थी। उसमें बृहस्पति, शुक्राचार्य, सप्तर्षि, इन्द्र, अग्नि, वायु, वसु आदि देवता, सिद्ध, साध्य, गन्धर्व सब यथा स्थान बैठे हुए थे। उसी समय नर-नारायण भी उधर से निकले। उनके तेजस्वी मुखमण्डल और प्रभावशाली शरीर को देखकर सब लोग विस्मित-चकित हो गये। वे दोनों ब्रह्मा की सभी में ठहरे भी नहीं, आगे चले गये। '

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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