विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारीवे जहाँ रहते हैं, वहीं इन गुणों का विस्तार हो जाता है। वे विद्वान् एवं महात्मा हैं, वे कहीं वेश बदलकर रहते होंगे। मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह सकता। यदि उन्हें ढूँढना ही है, तो ऐसे लक्षणयुक्त स्थान में ही तलाश करो।' भीष्म के इन वचनों से स्पष्ट हो जाता है कि उनकी युधिष्ठिर आदि के सम्बन्ध में कैसी धारणा है। वे दुर्योधन के पास रहते हुए भी हृदय से युधिष्ठिर पर ही आस्था रखते हैं और समय-समय पर युधिष्ठिर की प्रशंसा किया करते हैं। सुशर्मा की सलाह से कौरवों ने मत्स्य देश के राजा विराट पर चढ़ाई कर दी। उन दिनों पाण्डव वेष बदलकर वहीं रहते थे। महाराज विराट सुशर्मा से युद्ध करने के लिये एक दिशा में गये हुए थे, दूसरी दिशा से कौरवों ने आक्रमण कर दिया। अवसर देखकर अर्जुन प्रकट हो गये। यह बात कौरवों से भी छिपी नहीं रही। लोगों में यह चर्चा होने लगी कि अज्ञातवास का वर्ष पूरा होने के पहले ही अर्जुन प्रकट हो गये हैं: इसलिये इन्हें फिर बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा। द्रोणाचार्य के पूछने पर भीष्म पितामह ने कहा-'आचार्य! कालचक्र के बहुत-से छोटे-बड़े अंश होते हैं, जैसे काष्ठा, कला, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, ग्रह, नक्षत्र, ऋतु और वर्ष। समय की घटती-बढ़ती और नक्षत्रमण्डल की गति के उलट-फेर से हर पाँचवें वर्ष दो महीने बढ़ते हैं। उन मलमासों को जोड़कर आज तेरह वर्ष पूरे होकर पाँच महीना छ: दिन अधिक हो गये हैं। पाण्डवों की प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी है, इसी से अर्जुन तुम्हारे सामने प्रकट हुए हैं। पाँचों पाण्डव विशेष करके युधिष्ठिर धर्म और अर्थ का तत्व जानते हैं। वे निर्लोभ हैं। उन्होंने कठोर साधना की है। वे अधर्म करके राज्य पाना नहीं चाहते। धर्म के बन्धन में बंधे रहने के कारण ही अब तक उन्होंने अपना पराक्रम नहीं दिखाया है। वे हँसते-हँसते मृत्यु के मुँह में जाना स्वीकार कर सकते हैं: परंतु असत्य के मार्ग में जाना स्वीकार नहीं कर सकते। वे अपना हक लेकर छोड़ेंगे। इन्द्र भी उनका हिस्सा नहीं दबा सकते। अब हमें उनके साथ युद्ध करना होगा।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज