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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारीइतना सब होने पर भी भीष्म पितामह का हृदय पाण्डवों के ही पक्ष में था। इस बात का प्रमाण महाभारत में स्थान-स्थान पर मिलता है। पहली बार के जुए में तो धृतराष्ट्र ने द्रौपदी को पुन: सारी सम्पत्ति दे दी, पाण्डवों को मुक्त कर दिया: परंतु दूसरी बार के जुए में पाण्डवों के लिये बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास तय रहा। उन्होंने वन में जाकर बड़ी तपस्या की, अर्जुन ने पाशुपतास्त्र प्राप्त किया। तेरहवें वर्ष का अज्ञातवास रुप बदलकर विराटनगर में बिताया। एक प्रकार से अज्ञातवास का एक वर्ष बीत जाने पर कौरवों को बड़ी चिन्ता हुई कि आजकल पाण्डव कहाँ हैं? उन्हें किस प्रकार नष्ट किया जाये। गुप्तचरों ने आकर जवाब दे दिया कि उनका पता कहीं नहीं चला, अब वे जीवित नहीं हैं- ऐसा जान पड़ता है। दुर्योधन ने दु:शासन, कर्ण और द्रोणाचार्य की सलाह ली। उन लोगों ने कहा कि पता लगाना चाहिये। भीष्म ने द्रोणाचार्य के कथन की पुष्टि की और कहा कि 'पाण्डव श्रीकृष्ण के अनुगामी हैं, सदाचार का पालन करते हैं। उनके नाश की तो सम्भावना ही नहीं है। उनका पता लगाने का उपाय मैं बताता हूँ। दूसरे लोगों ने युधिष्ठिर के अज्ञात होकर रहने का जो कारण बताया है वह मुझे ठीक नहीं जँचता। पाण्डव लोग जिस नगर या देश में होंगे वहाँ के राजा का अमंगल नहीं हो सकता। वहाँ के लोग दानी, मधुर बोलने वाले, मर्यादा की रक्षा करने वाले, जितेन्द्रिय, सत्यवादी और अपने धर्म पर अनुराग रखने वाले होंगे। वहाँ वेद की ध्वनि सुनायी पड़ती होगी, अनेकों यज्ञ होते होंगे। ठीक समय पर वर्षा होती होगी, पृथ्वी अन्न से हरी-भरी और भयरहित होगी। अन्न में बड़ा स्वाद होगा, फल स्वास्थ्यकर होंगे। शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा चलती होगी। कोई किसी का विरोध नहीं करता होगा। गौएँ बलिष्ठ होंगी। वहाँ के द्विज अपने धर्म के पालन में लगे होंगे। वहाँ की प्रजा में पारस्परिक प्रेम होगा। कोई असमय में मरता नहीं होगा। लोगों की अतिथि सत्कार में रुचि होगी। वहाँ की प्रजा उत्साहपूर्ण होगी। युधिष्ठिर में सत्य, धैर्य, दाननिष्ठा, शान्ति, क्षमा, लोकलज्जा, शोभा, कीर्ति, महानुभावता, दया, सरलता आदि सद्गुण सर्वदा विद्यमान हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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