भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 43

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

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विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी

प्रश्न यह होता है कि भीष्म-जैसे धर्मज्ञ और धर्मात्मा पुरुष ने भी द्रौपदी के प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं दिया? विचारने पर मालूम होता है कि उन दिनों की परिस्थिति बड़ी विषम थी। पाण्डव दूर रहते थे। भीष्म कौरवों के साथ ही रहते थे। दुर्योधन ही उनके भोजन आदि की व्यवस्था करता था। उनके अशुद्ध अन्न के भोजन से और अशुद्ध सहवास से भीष्म पितामह की बुद्धि भी कुछ प्रभावित हो गयी थी: जिससे विचारने की चेष्टा करने पर भी भीष्म द्रौपदी के गूढ़ प्रश्न का निर्णय नहीं कर सके। इसके सम्बन्ध में एक किवदन्ती है। पता नहीं, यह कथा किसी पुराण में आयी है या नहीं। गुरुजनों से सुनी गयी है अवश्य। जब भीष्म पितामह शरशय्या पर पड़े हुए थे और धर्मराज युधिष्ठिर उनके अनेकों प्रकार के धर्म-कर्म, उपासना, ज्ञान के तत्व सुन रहे थे, तब एक बार एकाएक द्रौपदी हँस पड़ी। भीष्म पितामह ने द्रौपदी को हँसते हुए देखकर पूछा-'बेटी! तुझे अकारण हँसी नहीं आ सकती, बताओ, इस समय हँसने का क्या कारण है?' द्रौपदी ने कुछ संकोच के साथ अपने मन की बात कह दी। उसने कहा-'दादाजी! जब मैं भरी सभा में नग्न की जा रही थी और आपसे पूछ रही थी कि इस सम्बन्ध में धर्मसंगत बात क्या है? जुए में अपने को हारे हुए धर्मराज मुझे हारने का अधिकार रखते हैं या नहीं? तब तो आपने कह दिया कि मेरी बुद्धि इसका ठीक-ठीक निर्णय नहीं कर रही है, युधिष्ठिर जो कहें वही ठीक है: परंतु आज आप धर्मराज को धर्म तत्व का उपदेश कर रहे हैं, यही देखकर मुझे हँसी आ गयी।'

भीष्म पितामह ने कहा-'बेटी! उस समय कौरवों के संग और दूषित अन्न के कारण मेरी बुद्धि दूषित एवं धर्माधर्म के निर्णय में असमर्थ हो गयी थी। अब बाणों के लगने से मेरा दूषित रक्त निकल गया है और बुद्धि पवित्र हो गयी है। इस समय मुझे धर्म के रहस्य स्पष्ट दीख रहे हैं।'

चाहे भीष्म पितामह की बुद्धि दूषित हुई हो या न हुई हो, इस किवदन्ती से इतनी शिक्षा तो मिलती ही है कि दूषित वायुमण्डल और दूषित मनोवृत्ति वाले लोगों का प्रभाव बड़े ऊँचे पुरुषों पर भी पड़ सकता है। भीष्म ने चाहे जान-बूझ करके ही वैसा अभिनय किया हो और अपने ऊपर कुछ लांछन स्वीकार करके भी हम लोगों को इस दोष से मुक्त रहने को प्रेरित किया हो; क्योंकि महापुरुषों की प्रत्येक चेष्टा लोगों के कल्याण के लिये ही हुआ करती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

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