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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वधउस यज्ञ मण्डप में चेदिदेश का राजा शिशुपाल भी उपस्थित था, उससे भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा सहन नहीं हुई। वह क्रोध के मारे तमतमा उठा, उसकी आँख लाल-लाल हो गयीं। वह खड़ा होकर भीष्म तथा युधिष्ठिर का तिरस्कार करके श्रीकृष्ण को भला-बुरा कहने लगा। शिशुपाल ने कहा-'युधिष्ठिर! यहाँ बड़े-बड़े धार्मिक विद्धान् और सदाचारी नरपति उपस्थित हैं, उनके सामने किसी प्रकार पूजा पाने योग्य नहीं। तुमने लोगों से सम्मति लिये बिना ही पूजा की है, यह सर्वथा अयोग्य है, तुम्हें धर्म के सूक्ष्म रहस्य का पता नहीं है। इस विषय में तुम बच्चे हो। बूढ़े भीष्म ने भी धर्म मर्यादा का उल्लंघन करके अपनी अज्ञता ही प्रकट की है। तुम्हें सब लोग धर्मज्ञ और धर्मात्मा समझते थे, परंतु कृष्ण को प्रसन्न करने के लिये तुमने अनुचित आचरण किया है। सब लोगा तुम्हारी निन्दा करेंगे। कृष्ण राजा नहीं है, सबसे वयोवृद्ध भी नहीं हैं: क्योंकि उनके पिता वसुदेव भी इस यज्ञ मण्डप में उपस्थित हैं। यदि तुम उन्हें अपना हितैषी और अनुगत समझते हो तो द्रुपद क्या उनसे कम हैं? आचार्यों में द्रोणाचार्य, ऋत्विजों में व्यास और मृत्यु को अपनी इच्छा के अधीन रखने वाले भीष्म जब यहीं उपस्थित हैं, तब श्रीकृष्ण की पूजा कैसे हो सकती है? क्या हम लोगों को अपमानित करने के लिये ही निमन्त्रित किया था? हमने भय, लोभ अथवा मोह से तुम्हें अपना सम्राट नहीं बनाया है। हमने तुम्हें धर्मात्मा समझकर ही 'कर' दिया है। यह अधर्म करके तुमने अपनी कीर्ति और धार्मिकता नष्ट कर दी है। कृष्ण को भी यह पूजा नहीं स्वीकार करनी चाहिये थी। इस एक ही क्रिया से भीष्म, युधिष्ठिर और कृष्ण तीनों की नासमझी प्रकट हो गयी, अब मैं इस सभा में नहीं रह सकता।' इतना कहकर शिशुपाल अपने अनुगामी राजाओं के साथ युधिष्ठिर आदि की ओर तिरछी नजर से देखता हुआ सभा से जाने लगा। युधिष्ठिर शिशुपाल के पास गये और मीठे वचन से समझाने लगे कि 'राजन्! विचार करके देखो तो सही, इतने राजाओं के बीच में से बिगड़कर चल देना क्या तुम्हारे योग्य काम है? महात्मा भीष्म और श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में जो कुछ तुमने कहा है वह कहने योग्य नहीं था। उसमें तुम्हें अधर्म का भागी होना पड़ेगा। उन बातों से भीष्म आदि का कुछ बिगड़ा नहीं, तुम्हारी ही जिह्य दूषित हुई। यहाँ तुमसे बहुत बुद्धिमान, विद्धान् और धर्मज्ञ राजा बैठे हैं। भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा होते देखकर किसी को असन्तोष नहीं हुआ है। उनकी बात सर्वथा धर्मसंगत है। श्रीकृष्ण के तत्व, रहस्य, गुण, प्रभाव और महिमा को जितना भीष्म पितामह जानते हैं उतना तुम नहीं जानते-जान नहीं सकते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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