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श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वधयुधिष्ठिर को शिशुपाल का अनुनय-विनय करते देखकर भीष्म पितामह ने कहा-'बेटा! श्रीकृष्ण ही सबसे महान् और सबसे पुरातन हैं। जो उन्हीं को सर्वोत्तम और पूजनीय नहीं मानता, उसके साथ इतनी नम्रता का व्यवहार करना उचित नहीं है। क्षत्रियों में सर्वश्रेष्ठ कौन है, जो वीर है, विजयी है? श्रीकृष्ण ने युद्ध में किस राजा को पराजित नहीं किया है? कोई है तो बोले। केवल हमारी ही दृष्टि में ये सर्वोपरि पूजनीय हैं, सो बात नहीं: बल्कि ये सारे संसार के पूजनीय हैं, ये सारे जगत् के आधार हैं, अधिष्ठान हैं। हमने बहुत सोच-विचारकर बुद्धिपूर्वक निश्चय करके श्रीकृष्ण की पूजा की है। युधिष्ठिर! शिशुपाल से अब और अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। अपनी बुद्धि को स्थिर करो। हमने बड़े-बड़े ऋषि-महर्षियों का संग किया है, उन लोगों के मुँह से हमने पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के अनेकों गुण श्रवण किये हैं। इनके उत्तम और अलौकिक कर्मों को भी मैं जानता हूँ। जो इनके महत्तव में संदेह करते हैं, उन्होंने कभी उत्तम पुरुषों का सत्संग नहीं किया है। 'शिशुपाल! हमने जो श्रीकृष्ण की पूजा की है, वह उनके नातेदार होने के कारण, हितैषी होने के कारण अथवा स्वतन्त्रता से नहीं की है, वास्तव में ये पूजा करने योग्य है।' यदि उनकी भगवत्ता पर दृष्टि न रखी जाये, केवल गुणों को ही देखें तो भी वेद-वेदांगों के ज्ञान, बल, दान, चातुरी, शूरता, कीर्ति, बुद्धिमत्ता, नम्रता, श्री, ह्री, मर्यादापालन, धैर्य, तुष्टि और पुष्टि- ये सब और दूसरे भी असंख्य गुण श्रीकृष्ण में विधमान हैं। ये सबके प्यारे हैं, आचार्य है, पिता हैं, गुरु हैं और सब कुछ हैं। इसी से हमने इनकी पूजा की है। 'नरपतियो! श्रीकृष्ण की पूजा से सबको प्रसन्न होना चाहिये: क्योंकि श्रीकृष्ण की पूजा सबकी पूजा है। ये कल्याण स्वरुप श्रीकृष्ण ही सारे जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं। जगत् के रुप में वही प्रकट हो रहे हैं। प्रकृति और पुरुष दोनों ही इनके अपने रुप हैं। ये सबके अन्तर्यामी और सर्वव्यापी होने पर भी सबसे परे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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