भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 31

श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

Prev.png

पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश

व्यासदेव की सलाह से सत्यवती, अम्बिका और अम्बालिका तीनों ही तपस्या करने चली गयीं और कठोर तप करके सद्गति को प्राप्त हुईं। कुन्ती समानभाव से पाँचों पाण्डवों पर स्नेह करती, उनके सुख-दु:ख का ध्यान रखती और उन्हें देख-देखकर सुखी होती रहती। भीष्म का पाण्डव और कौरव दोनों से ही स्नेह रखते और भगवान् का भजन किया करते। विदुर की सलाह से धृतराष्ट्र प्रजापालन करते और सब लोग बड़े आनन्द से रहते। सब बालकों के वेदोक्त संस्कार हुए, वे राजभोग भोगते हुए अपने पिता के घर में बढ़ने लगे। बचपन से ही पाण्डावों के प्रति कौरवों में ईर्ष्या-द्धेष का बीजारोपण होने लगा। कारण यह था कि दौड़ने में, निशाना लगाने में; खाने-पीने में, धूल उछालने में भीमसेन सबसे बढ़कर थे। भीमसेन का बल देखकर कौरवों के मन में जलन होती। खेल-खेल में कभी सामना हो जाता तो अकेले भीम एक सौ एक कौरवों को हरा देते। वे हँसते-हँसते उनका सिर लड़ा देते, उन्हें गिरा देते। दस-दस को दोनों हाथों में पकड़कर पानी में गोता लगाते और उनके बेदम होने पर निकलते। जब वे छोटे-छोटे पेड़ों पर चढ़कर अपने खाने के लिये फल तोड़ने लगते, तब भीमसेन पेड़ की जड़ पकड़कर हिला देते और बहुत-से फलों के साथ वे भी नीचे आ जाते। भीमसेन के मन में द्धेषभाव तनिक भी नहीं था, केवल लड़कपन था: परंतु कौरव उनके इस लड़कपन से चिढ़ते थे। धीरे-धीरे उनके मन में शत्रुता का भाव दृढ़ होने लगा।

दुर्योधन का मन दूषित हो गया। वह चाहने लगा कि किसी प्रकार भीम मारे जायें। एक बार उसने ऐसा षड्यन्त्र किया कि भीम को विष खिला दिया और उन्हें लताओं से बांधकर गंगाजी में फेंकवा दिया, परंतु इससे भीम का अहित नहीं हुआ। भीमसेन वहाँ से पारे का रस पीकर लौटे, जिससे उनके शरीर का बल बहुत ही बढ़ गया। युधिष्ठिर ने भीमसेन को ऐसा समझा दिया कि यह बात किसी पर प्रकट न की जाये, नहीं तो अपनी ही वदनामी है। दुर्योधन क्या कोई दूसरे थोड़े ही हैं? इस प्रकार दुर्योधन ने कर्ण और शकुनि की सलाह से कई बार उनका अनिष्ट करना चाहा, परंतु विदुर की सलाह से पाण्डव बचते गये।

यह सब बातें भीष्म को भी मालूम होती थीं। उन्होंने सोचा कि अभी बच्चे हैं, बेकार रहते हैं, इसलिये इनमे मन में अनेकों दुर्भाव आया करते हैं। इन्हें अब किसी काम में लगा देना चाहिये। ऐसा सोचकर उन्होंने इन बालकों को धनुर्वेद सिखाने का काम कृपाचार्य को सौंप दिया। उनके पास कौरव और पाण्डव वेद, उपवेद और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करने लगे। कृपाचार्य ही उन्हें धनुर्वेद की शिक्षा भी देते थे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भीष्म पितामह -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. वंश परिचय और जन्म 1
2. पिता के लिये महान् त्याग 6
3. चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म, राज्य भोग, मृत्यु और सत्यवती का शोक 13
4. कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यन 24
5. पाण्डवों के उत्कर्ष से दुर्योधन को जलन, पाण्डवों के साथ दुर्व्यवहार और भीष्म का उपदेश 30
6. युधिष्ठिर का राजसूय-यज्ञ, श्रीकृष्ण की अग्रपूजा, भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा महत्तव का वर्णन, शिशुपाल-वध 34
7. विराट नगर में कौरवों की हार, भीष्म का उपदेश, श्रीकृष्ण का दूत बनकर जाना, फिर भीष्म का उपदेश, युद्ध की तैयारी 42
8. महाभारत-युद्ध के नियम, भीष्म की प्रतिज्ञा रखने के लिये भगवान् ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी 51
9. भीष्म के द्वारा श्रीकृष्ण का माहात्म्य कथन, भीष्म की प्रतिज्ञा-रक्षा के लिये पुन: भगवान् का प्रतिज्ञा भंग, भीष्म का रण में पतन 63
10. श्रीकृष्ण के द्वारा भीष्म का ध्यान,भीष्म पितामह से उपदेश के लिये अनुरोध 81
11. पितामह का उपदेश 87
12. भीष्म के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण की अन्तिम स्तुति और देह-त्याग 100
13. महाभारत का दिव्य उपदेश 105
अंतिम पृष्ठ 108

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः