विषय सूची
श्री भीष्म पितामह -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती
कौरव-पाण्डवों का जन्म तथा विद्याध्यनप्राणियों की हत्या भी कभी धर्म हो सकती है? पाण्डु इस दोष से ग्रस्त हो गये थे और इसका कुफल भी उन्हें भोगना ही पड़ा। एक दिन मृगरुपधारी ऋषि पर उन्होंने बाण चला दिया और उस ऋषि ने मरते समय उन्हें शाप दे दिया कि यदि तुम पुत्र उत्पन्न करने के लिये स्त्री का सहवास करोगे तो मर जाओगे। उसी दिन से पाण्डु संयमपूर्वक रहने लगे और माद्री एवं कुन्ती उनकी सेवा करने लगीं। कुन्ती को दुर्वासा के बतलाये हुए मन्त्र के प्रभाव से देवताओं के आवाहन की शक्ति प्राप्त थी। वह जब चाहती जिस देवता को बुला लेती। इस बात की परीक्षा भी उसने सूर्य को बुलाकर कर ली थी, जिनकी कृपा से कर्ण की उत्पत्ति हुई थी। अब उसने अपने धर्मात्मा पति पाण्डु की अनुमति लेकर क्रमश: धर्म, इन्द्र और वायु का आवाहन किया तथा उनकी कृपा से युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम तीन पुत्र प्राप्त किये। उसी ने अश्विनी कुमारों का आवाहन कर माद्री को भी दो पुत्र प्राप्त कराये, जिनका नाम नकुल और सहदेव था। थोड़े ही दिनों के बाद पाण्डु की मृत्यु हो गयी। जब तक पाण्डु पर्वत पर रहते थे, तब तक भीष्म की देख-रेख में विदुर की सम्मति से धृतराष्ट्र ही प्रजापालन करते थे और पाण्डु की जो आवश्यकता होती थी, वही भेज देते थे। अब ऋषियों ने पाण्डु के पुत्रों को कुन्ती के साथ हस्तिनापुर में पहुँचा दिया और उनके बालक होने के कारण राज्य का सारा कारबार धृतराष्ट्र के ही हाथ रहा। हस्तिनापुर आकर पाँचों पाण्डव और दुर्योधन आदि सौ कौरव एक साथ ही विधाध्ययन एवं धनुर्विधा का अभ्यास करने लगे। वे भीष्म पर बड़ी श्रद्धा-भक्ति रखते थे, उनकी आज्ञाओं का पालन करते थे और भीष्म भी बड़े स्नेह से, बड़े लाड़-प्यार से उन्हें रखते थे। इस प्रकार कौरव और पाण्डवों का बचपन बीतने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज